बाघों के मार्ग के अवरोध

Afeias
04 Sep 2019
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Date:04-09-19

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भारत में बाघों की बढ़ती संख्या हर्ष का विषय है। 4 वर्षों में हुई बाघों की गणना से पता चलता है कि विश्व के कुल 4000 बाघों में से 3000 भारत में हैं। प्रतिवर्ष लगाया जाने वाला बाघों की संख्या का अनुमान इसके दायरे को बढ़ाता है। कैमरा ट्रैप  इमेज, पंजों की छाप का सर्वेक्षण और उनके शिकार की प्रजातियों को इकट्ठा करने के अलावा एक वर्ष की उम्र के बाघों की भी गणना को इस बार के सर्वेक्षण में शामिल किया गया है।

विडंबना यह है कि एक ओर तो हम बाघों की बढ़ती संख्या से खुश हो रहे हैं, दूसरी ओर नई सरकारी नीतियां इनके अस्तित्व के विरूद्ध काम कर रही हैं।

  • सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गों और रेल ट्रैक के चैड़ीकरण की छूट दे दी है। उदाहरण के लिए देश के सर्वश्रेष्ठ बाघ अभ्यारण्य, मध्यप्रदेश के पेंच बाघ अभ्यारण्य को लिया जा सकता है। यहाँ राष्ट्रीय राजमार्ग क्रं. 7 पेंच और कान्हा राष्ट्रीय उद्यानों को जोड़ता है। हाल ही में इसका चैड़ीकरण किया गया है। अब पशुओं को इसे पार करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अतः यहाँ एक अंडरपास बनाया गया है।
  • महाराष्ट्र के राजमार्गों पर बैरियर लगे हुए है। हाल ही में एक बाघ को बैरियर से छलांग लगाकर सड़क पार करते देखा गया।

प्रति वर्ष अनेक पशु सड़क पर मरते हैं।

  • बाघ अभ्यारण्यों के मार्ग में रेलवे और सिंचाई परियोजनाएं भी आ रही हैं। केन-बेतवा नदी को जोडने की योजना से पन्ना बाघ अभ्यारण्य के 100 वर्ग कि.मी. क्षेत्र के डूबने की आशंका है।

बाघों की बढ़ती संख्या निःसंदेह एक सकारात्मक छवि पैदा करती हैं, लेकिन इसको यहीं रुकना नहीं चाहिए।

भविष्य में बाघों के संरक्षण के लिए कुछ एहतियाती कदमों का उठाया जाना जरूरी है।

1) राजमार्गों और रेलवे का विस्तार बाघ संरक्षित क्षेत्रों में न किया जाए।

2) इन क्षेत्रों में सिंचाई योजनाएं न लाई जाएं।

3) लागत-लाभ विश्लेषण करते हुए वन्य पशुओं की जरूरतों को ध्यान में रखना चाहिए।

हाल ही में भोपाल के निकट ही बाघों के एक झुण्ड को खड़े देखा गया था। वे निकट के रातापानी बाघ अभ्यारण्य से आए होंगे। आखिर हम बाघों के सड़क हादसों, करंट लगने या विष से मरने तक का इंतजार क्यों करें।

प्रधानमंत्री ने स्पष्ट संदेश दिया है कि विकास को पर्यावरण की राह का रोड़ा नहीं बनने देना है। न ही दोनों को एक दूसरे की कीमत पर पाना है। यह सच भी है।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित नेहा सिन्हा के लेख पर आधारित। 8 अगस्त, 2019

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