न्याय-व्यवस्था को दुरूस्त बनाने का मार्ग

Afeias
01 Apr 2020
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Date:01-04-20

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पिछले कुछ दिनों से कोरोना शब्द पूरी दुनिया पर छाया हुआ है। यह केवल संकट नहीं है, बल्कि समय है, जनसंख्या विस्फोट के साथ अपने भविष्य के लिए कुछ सोचने और विचारने का। भविष्य से जुडी ट्रैफिक, स्वास्थ्य सेवाओं और न्यायालयों की जो भी आशंकाएं है, उन सभी के लिए तैयारी की एक भूमिका बनती जा रही है। अगर सोशल ड़िस्टेसिंग और वर्क फ्रॉम होम से कोरोना वायरस जैसी महामारी से निपटा जा सकता है, तो क्या भविष्य में हम इसी तरह अन्य क्षेत्रों में भी तकनीक आधारित समाधान नहीं ढूंढ सकते ?

अगर न्यायालयों के संदर्भ में देखा जाए, तो पेपरलैस और पीपुललैस न्यायालय संभव हो सकते हैं? कुछ समय से कागजविहिन न्यायालयों पर चर्चा की जा रही है। इसे संभव बनाने के लिए हमें न्यायशास्त्र के विद्यार्थियों को तकनीक का भी भरपूर ज्ञान देना होगा। विडियो एवीडेंस, विडियो कांफ्रेंसिंग और टेलीप्रेसेंस तकनीक का उचित पाठ्यक्रम बनाना होगा।

  • इस मोर्चे पर काम करके, ग्लोबल वार्मिंग के क्षेत्र में भारत एक उदारहण प्रस्तुत कर सकता है। कागजी कार्यवाही खत्म करने से न्यायालय में लोगों की भीड़ खत्म हो जाएगी। इससे देश में कार्बन फुटप्रिंट को बहुत कम किया जा सकेगा।
  • तकनीक का लाभ विवादास्पद और गैर-विवादस्पद, दोनों ही मामलों में उठाया जा सकता है। इसमें सुनवाई भी वर्चुअल आधार पर हो सकती है। इससे भी कागजी कार्यवाही नही के बराबर रह जाएगी, और भीड कम होगी। इससे न तो काम कम होगा, और न ही उसकी हानि होगी।
  • डेटा साइंस और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से लंबित पड़े मामलों को शीघ्र निपटाया जा सकेगा। इस प्रकार न्याय तंत्र समय पर न्याय प्रदान करने में सक्षम, जन-कल्याणकारी बन सकेगा। नागरिकों को समयबद्ध तरीके से न्याय उपलब्ध हो सकेगा।
  • न्याय तक पहुँच को बढ़ाकर, बढ़ती असमानता से उत्पन्न खतरों को घटाकर, न्याय और समाज के बीच के संबंधों को रूपांतरित किया जा सकता है।
  • इन सबसे ऊपर हम लोगों की बढ़ती मांग को पूरा कर सकते हैं। न्याय के प्रशासन में एक नए दृष्टिकोण, नई रणनीति और डिजीटलीकरण के माध्यम से अधिक सशक्त निर्णय-क्षमता को स्थापित किया जा सकता है।

कोविड-19 ने लोगों को कम-से-कम  संख्या में एकत्रित होकर काम करने पर मजबूर कर दिया है। हम इसी ढांचे को आगे भी चला सकते हैं। यही वह समय है, जब परिस्थितिजन्य समस्या से हम भविष्य के लिए एक मार्ग ढूंढ निकालें।

‘इंडियन एक्सप्रेस‘ में प्रकाशित हितेश जैन के लेख पर आधारित। 19 मार्च, 2020

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