पुलिस व्यवस्था को दुरूस्त करने की आवश्यकता

Afeias
02 Feb 2018
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Date:02-02-18

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हाल ही में पुलिस के महानिदेशकों का वार्षिक सम्मेलन टेकनपुर (ग्वालियर) में सम्पन्न हुआ है। अन्य हस्तियों के साथ प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री भी इस सम्मेलन में शामिल हुए। इससे पहले गुवाहटी और कच्छ में हुए पुलिस सम्मेलनों में भी प्रधानमंत्री ने अपना समय दिया था। इससे पहले पुलिस के प्रति किसी भी नेता ने शायद ही इतनी संवेदनशीलता दिखाई हो। इसके बावजूद अभी हमारे देश में औपनिवेशिक पैटर्न पर चली आ रही पुलिस व्यवस्था को प्रगतिशील, आधुनिक एवं प्रजातांत्रिक देश की जनता की भावनाओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए सरकार के प्रयासों में देर हो रही है। पुलिस को ‘स्मार्ट’ बनाने का प्रधानमंत्री का स्वप्न धरातल के स्तर पर साकार नहीं हुआ है।

  • सन् 2006 में सोली सोराबजी की अध्यक्षता में मॉडल पुलिस अधिनियम तैयार किया गया था, जिसे आज तक लागू नहीं किया गया है।
  • 22 सितम्बर 2006 को उच्चतम न्यायालय ने प्रकाश सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में केन्द्र एवं राज्य सरकारों को पुलिस सुधार से संबंधित सात दिशा-निर्देशों के पालन का आदेश दिया था। न्यायालय के इस आदेश देने के पीछे दो उद्देश्य थे – (1) पुलिस के लिए कार्यात्मक स्वायत्तता एवं (2) पुलिस की जवाबदेही में वृद्धि। दोनों ही मानकों का उद्देश्य पुलिस संगठनात्मक प्रदर्शन एवं निजी आचरण में सुधार करना था। इस आदेश को दिए दस वर्ष से भी अधिक बीत चुके हैं। परन्तु राज्य सरकारें इन्हें अमल में नहीं ला सकी हैं।
  • पुलिस विभाग में बहुत ही ज्यादा भ्रम की स्थिति बनी हुई है। पहले, पूरे देश के लिए एक पुलिस विधेयक हुआ करता था। लेकिन अब 17 राज्यों ने इससे जुड़े अलग-अलग कानून अधिनियमित कर रखे हैं। बाकी के राज्यों ने इससे संबंधित कार्यकारी आदेश जारी कर रखे हैं।
  • भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों ने नक्सलियों की समस्या, पंजाब में आतंकवाद, त्रिपुरा के विद्रोह आदि को बडी कुशलता से नियंत्रण किया है। परन्तु सरकारी अनुक्रम में उन्हें अभी भी उचित स्थान नहीं दिया गया है। इससे इन अधिकारियों में पहल करने की कमी आई है। इनके प्रदर्शन पर भी असर पड़ा है।
  • हमारे देश में लगभग 24,000 पुलिस थाने हैं। पुलिस बल की संख्या लगभग 20 लाख 26 हजार है। ये लोग अपनी क्षमता का मात्र 45 प्रतिशत ही राष्ट्र को दे पा रहे हैं। बुनियादी ढांचे की कमी, जनशक्ति एवं कार्यात्मक स्वायत्तता का अभाव, इसका मुख्य कारण है। अगर देश की पुलिस पूरी तरह से सक्षम होगी, तो राष्ट्र की माओवादी, कश्मीरी आतंकवाद तथा उत्तरपूर्वी राज्यों के अलगाववादी आंदोलन से आसानी से निपटा जा सकेगा। लोग अपने को सुरक्षित महसूस करेंगे। भारत की तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था को भी तभी सही सफलता मिल सकती है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित प्रकाश सिंह के लेख पर आधारित।

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