न्याय की गति को बढ़ाने हेतु कुछ उपाय

Afeias
09 Apr 2021
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Date:09-04-21

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हाल ही में पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने न्यायिक तंत्र को कटघरे में खड़े करते हुए कहा है कि वादियों को न्याय पाने के लिए अंतहीन प्रतीक्षा करनी पड़ती है। न्यायाधीशों को अक्सर यह कहते भी सुना गया है कि- ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड।’ सवाल उठता है कि शक्ति संपन्न न्यायाधीश अपने कार्यकाल में समय रहते उन कमियों को दूर करने का प्रयास क्यों नहीं करते , जिन्होंने न्याय व्यवस्था को लाचार बना रखा है।

हर क्षेत्र में कानून का पालन करने वालों की जगह कानून तोड़ने वाला राज कर रहा है। 2019 की लोकसभा के लिए चुने गए 539 सांसदों में से 239 पर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं। न्यायिक प्रक्रिया इतनी लंबी क्यों चलती है कि सभी तरह की अपीलों के बावजूद अभियुक्त की मृत्यु तक आरोप सिद्ध नहीं हो पाता। हर्षद मेहता , जयललिता तथा कांग्रेस के मंत्री मिश्रा की हत्या का मामला जैसे अनेक उदाहरण दिए जा सकत हैं , जिनमे वर्ष-दर-वर्ष , तारीखें मिलती जाती हैं , परंतु न्याय नहीं मिल पाता।

न्यायालयों में लंबित मामलों की तेजी से बढ़ती रफ्तार के बावजूद भारत के उच्च न्यायालयों के मात्र 62% पद भरे हुए हैं। इनमें इलाहबाद उच्च न्यायालय की स्थिति सबसे खराब थी।

2019 का आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि न्याय में देरी से कितने अनुबंध व्यवहार में नहीं आ पाते। इसमे होने वाली देरी से बाजार तंत्र अस्त-व्यस्त ही रहता है। वह पनप नहीं पाता है।

क्या किया जाना चाहिए ?

  • ऐसा अनुमान है कि निचली अदालतों में 2,279 न्यायाधीश , उच्च न्यायालय में 93 और उच्चतम न्यायालय में एक जज की संख्या को बढाकर मामलों का निपटारा समय पर किया जा सकता है।
  • पूर्व न्यायाधीशों को एक समूह का गठन करके जल्द व निष्पक्ष न्याय के तरीके प्रस्तावित करने चाहिए। 1998 में हुई विश्व बैंक की रिसर्च का अध्ययन किया जाना चाहिए। इनमें उन देशों पर अध्ययन है, जिन्होंने नए कानूनों के जरिए न्याय की गति को बढ़ा दिया था। न्याय-व्यवस्था में सुधार के लिए न्यायाधीश ही सही दिशा तय कर सकते हैं।
  • न्यायाधीशों के प्रदर्शन और प्रमोशन वाले तंत्र को सिरे से खंगाला जाना चाहिए। आज एक युवा अधीनस्थ न्यायाधीश अगर न्याय की लंबी प्रक्रिया में कुछ नए तरीके लगाकर उसे सुधारना चाहे , तो उच्च न्यायालय द्वारा उसे खारिज कर दिया जाता है। अतः प्रमोशन का आधार , मामलों के निपटान की गति, स्थगनादेशों की संख्या , अनुपस्थिति के दिनों और गति को बढ़ाने में नवाचार को बना दिया जाना चाहिए।
  • अनेक देशों की न्याय व्यवस्था आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का उपयोग करके कई बदलाव ला रही हैं। इससे अनियमितताओं का पता लगाने में बहुत मदद मिल सकती है।
  • विभिन्नस्तर के न्यायालयों में निर्णय की विषमता के कारण न्याय मिलने में देर होती है। ए आई की मदद से निर्णयों में समानता रखी जा सकती है।

अमेरिका में एक डिस्कवरी प्रक्रिया का चलन है। दोनो पक्षों को अपने गवाहों और साक्ष्यों की सूची पहले से ही देनी पड़ती है। इनको ए आई के माध्यम से स्क्रीन किया जाता है , फिर समान मामलों में किए गए निर्णयों के आधार पर निर्णय बता दिया जाता है। अपवाद के अलावा इन निर्णयों को बदला नहीं जा सकता है। इससे न्यायालय के बाहर ही समझौता करने की प्रवृत्ति बढ़ती हैं , और न्यायालयों पर दबाव कम हो जाता है।

आने वाले समय में तकनीक के माध्यम से न्याय व्यवस्था के संचालन और गति में परिवर्तन होना वांछनीय है। अंतः इस गति को वर्तमान में अपना लिए जाने में देर नहीं की जानी चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित स्वामीनाथन एस अंकलेशरिया अय्यर के लेख पर आधरित। 21 मार्च , 2021

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