भीड़-हिंसा पर अंकुश की दिशा में एक कदम

Afeias
05 Sep 2019
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Date:05-09-19

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भीड़ द्वारा हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार लगातार प्रयत्नशील रही है। हाल ही में राजस्थान ने इस दिशा में एक बड़ी पहल की है। तहसीन पूनावाला बनाम केंद्र सरकार के एक मामले में वहाँ के एपेक्स कोर्ट की सिफारिशों पर राजस्थान प्रोटेक्शन फ्रॉम लिचिंग बिल, 2019 पारित किया गया है। मणिपुर के बाद ऐसा कानून बनाने के मामले में राजस्थान दूसरा राज्य हो गया है।

विधेयक में विशेष अदालतों के गठन, एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति और निर्धारित सजा को बढ़ाने की उच्चतम न्यायालय की सिफारिशों का पूर्णतः अनुगमन किया गया है। इस कानून का उद्देश्य व्यापक है। यह न केवल भीड़-हिंसा को अपराध मानता है, बल्कि रोषकारी सामग्री के प्रसार और शत्रुतापूर्ण वातावरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ कानूनी सहायता, क्षतिपूर्ति और प्रतिस्थापन की सुविधा देने की भी व्यवस्था करता है।

कानून के प्रमुख बिंदु –

  • यह विधेयक धर्म, जाति, लिंग, जन्म-स्थान, भाषा, खान-पान, यौन अभिविन्यास तथा राजनीतिक जुड़ाव आदि के आधार पर भीड़ द्वारा तत्काल या सुनियोजित तरीके से की गई हत्या को कानूनी अपराध मानता है।
  • विधेयक में अकेले में किए गए अपराध को शामिल नहीं किया गया है।
  • विधेयक में पुलिस अधिकारियों और जिला मजिस्ट्रेटों को भीड़ हिंसा और उससे जुड़े अपराध रोकने हेतु उपाय करने पर जोर दिया गया है।
  • विधेयक के अनुच्छेद 8(सी) में कहा गया है कि भीड़-हिंसा से प्राभावित व्यक्ति की मौत हो जाने पर आरोपी को आजन्म कठोर कारावास के साथ कम-से-कम एक लाख से 5 लाख रु. के दण्ड का प्रावधान है।
  • राजस्थान का प्रस्तावित कानून, अनुच्छेद 9 के अनुसार हत्या और हत्या के प्रयास के लिए समान दंड की व्यवस्था देता है।

फौजदारी कानून, अपराध की तीव्रता, पीडित और समाज के हित और फौजदारी कानून के उद्देश्य के बीच समानता के सिद्धांत के अनुसार एक संतुलन बनाकर निर्णय लेता है।

भीड़ द्वारा हत्या का मामला पूर्वाग्रह, असहिष्णुता के कारण कानून के शासन के प्रति अवमानना का मामला है।

अपनी सीमाओं में भी यह विधेयक राजनीतिक इच्छा-शक्ति का परिणाम है। यह उम्मीद की जा सकती है कि विचार-विमर्श के साथ इसे एक प्रबल संवैधानिक कानून का दर्जा मिल सकता है।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित अनमोलम और फरहीन अहमद के लेख पर आधारित। 5 अगस्त, 2019

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