घरेलू हिंसा को रोकना जरूरी है

Afeias
20 Jun 2018
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Date:20-06-18

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विश्व के लगभग सभी देशों में घरेलू हिंसा का होना कोई नई बात नहीं है। हाल ही के एक शोध में यह पाया गया है कि घरेलू हिंसा से होने वाली हानि, समय-समय पर होने वाले युद्धों एवं आतंकवाद से होने वाली हानि घरेलू हिंसा की तुलना में 25 गुणा अधिक है।

भारत में इसी विषय पर किए गए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षणों में यह पाया गया है कि 15-49 वर्ष के बीच की 22 प्रतिशत महिलाओं को पिछले वर्ष पति द्वारा की गई शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा। इसका अर्थ यह हुआ कि लगभग 5 करोड़ महिलाएं इस प्रकार की हिंसा से पीड़ित हुईं। एक शोध के अनुसार, घरेलू हिंसा के कारण भारतीय समाज को करोड़ों रुपये का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।

यद्यपि भारत में 2005 में महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा देने हेतु कानून बनाया गया है, तथापि यह कानून प्रभावशाली नहीं है।

  • घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की व्याख्या के बारे में स्वयं न्यायालयों में ही स्पष्टता का अभाव है।
  • बुनियादी ढांचे के लिए पर्याप्त धन का अभाव है।
  • न्यायाधीशों के बीच इस कानून को लेकर कोई सजगता नहीं है। समाज और सुरक्षा देने वाले अधिकारी भी इस कानून से अनजान से हैं।
  • स्वयं महिलाएं इस कानूनी अधिकार के बारे में नहीं जानतीं।
  • केवल कानून बना देने से समाज में व्याप्त इस कुप्रथा को नहीं रोका जा सकता है।

घरेलू हिंसा को रोकने के लिए फिलहाल विश्व में दो प्रकार के मॉडल काम कर रहे हैं-

  • इनमें पहला मॉडल युगांडा का है। वहाँ पुरुष और स्त्री के संबंधों में समानता लाने और महिलाओं के प्रति पुरुषों के दृष्टिकोण को बदलने के लिए ‘सासा’ नामक कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत समुदायों में सामंजस्यपूर्ण एवं समानता पर आधारित संबंध बनाने की शिक्षा दी जाती है। इस प्रकार की सामुदायिक शिक्षा पद्धति को अपनाकर वहाँ 52 प्रतिशत घरेलू हिंसा को कम भी किया गया है। यही कारण है कि 20 से अधिक देशों ने इस मॉडल को अपनाया है।
  • दूसरा मॉडल दक्षिण अफ्रीका का है। इसके अंतर्गत महिलाओं को कुछ धनराशि देकर, समुदायों में घरेलू हिंसा के नकारात्मक परिणामों को ऊजागर करना और लैंगिक समानता के लाभों का प्रचार करके महिलाओं के स्तर को ऊपर उठाया जा रहा है।

भारत के आंध्रप्रदेश राज्य में इस मॉडल पर काम करने के लिए 850 रुपये प्रति महिला व्यय होने का अनुमान है।

घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं वैतनिक कार्य तो दूर की बात है, घरेलू काम जैसा अवैतनिक काम भी करने में अक्षम हो जाती हैं। इसके कारण हमारी औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों ही प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं पर गहरी मार पड़ती है।

अतः घरेलू हिंसा को रोकना न केवल नैतिक दृष्टि से आवश्यक है, बल्कि देश की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी करने के लिए भी बहुत जरूरी है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित शीरीन वकील और बिऑर्न लॉमवॉर्ग के लेख पर आधारित। 2 जून, 2018

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