भारत में इंडिकॉर्न का भविष्य तैयार करें

Afeias
21 Jun 2018
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Date:21-06-18

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आने वाले दशक में कई इंटरनेट कंपनियाँ जन्म लेने वाली हैं। भारत में भी ऐसी डिजीटल यूनीकॉर्न या इंडीकॉर्न उद्योग की अपार संभावना है। भारत जैसी पूंजीबाधित अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र में बड़े-बड़े दांव खेलकर लाभ कमाने वाली कंपनियों का उदय नहीं हो पाया है, जबकि पश्चिमी देशों ने यहीं बाजी मार ली है। साथ ही भारत ने चीन की तरह फेसबुक और गूगल जैसी अमेरिकी कंपनियों पर प्रतिबंध नहीं लगाया। चीन ने इन अमेरिकी कंपनियों को प्रतिबंधित करके टेन्सेन्ट और बायदू जैसे चीनी यूनीकॉर्न को बढ़ावा दिया। हमारे देश में इंडीकॉर्न के लिए अनंत संभावनाएं हैं। परन्तु कुछ ढांचागत, आर्थिक और सामाजिक कारण ऐसे रहे हैं, जिन्होंने नवाचार के मार्ग में लगातार बाधाएं उत्पन्न की हैं।

  • हमारे देश में उद्यम पूंजी प्रणाली का अभाव है। सरकार को करों में छूट देने को लेकर हमेशा ही इसके दुरुपयोग का डर बना रहा। यही कारण है कि वह शोध एवं अनुसंधान तथा उद्यम पूंजी में निवेश करने पर कर में छूट देने से बचती रही है।
  • हमारे अकादमिक संस्थान शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी नहीं हैं। अगर ऐसा संभव हो पाता, तो हम इन अनुसंधानों का उपयोग व्यावसायिक दृष्टि से कर पाते। दरअसल, हमें स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के समान आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर काम करने वाला लैब चाहिए, जो आधुनिकतम शोध करने में सक्षम हो।
  • भारतीयों के मन में स्वदेशी उत्पादों के प्रति अभी भी वैसी विश्वास की भावना नहीं है, जैसी होनी चाहिए। हमारे यहाँ अपने समकक्षों से सूचना बाँटने के बजाय विदेशी कंपनियों से इसे बांटना बेहतर समझा जाता है। इस कमजोरी को पहचानकर उसे दूर करने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में निजता के उल्लंघन के लिए कड़ा दंडात्मक कानून बनाकर, अविश्वास के पक्ष को संभाला जा सकता है।
  • कोई भी नवाचार किसी समस्या से ही प्रेरित होता है। भारतीय नवोन्मेषी के लिए वैश्विक व्यवहार को समझकर कोई नवाचार करना आसान नहीं है। यहाँ का नवाचार, मुख्यतः भारतीय मध्य वर्ग पर ही आधारित हो सकता है। और विडंबना यह है कि हमारा मध्य वर्ग ही समरुप नहीं है। भारत में ऐसे किसी समाधान के लिए निम्न मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग को लक्ष्य करना होगा, जैसा कि पेटीएम और फ्लिपकार्ट ने किया है।
  • नवाचार के लिए विफलताओं को भी ध्यान में रखकर चलना होता है। हमारा परिवेश इसकी आज्ञा न के बाराबर देता है। हमें अपने तंत्र को ऐसा बनाना होगा, जहाँ किसी स्टार्टअप को आसानी से बंद किया जा सके। अगर हम पूरे कार्पोरेट जगत् को एक सुरक्षा कवच नहीं दे सकते, तो कम-से-कम नवाचार से जुड़ी कंपनियों के लिए तो ऐसा कर ही सकते हैं।

भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि हमारे पास नवाचार के क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या कहीं से कम नहीं होनी चाहिए। वैश्विक नवाचार सूची में हमारा स्थान 60वां है, जो प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से संतोषजनक लगता है। भारत को चाहिए कि वह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में गूगल के प्रतिरूप की ओर न बढ़कर, नए प्रतिमान स्थापित करने की ओर बढ़े।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अमित सिह के लेख पर आधारित। 6 जून, 2018

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