रोगी के लाभ की दृष्टि से स्वास्थ्य सेवा देने का समय

Afeias
19 Jun 2018
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Date:19-06-18

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भारतीय संविधान ने अपने नागरिकों को निःशुल्क स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी दे रखी है। सच्चाई यह है कि स्वास्थ्य सेवा का अधिकांश काम निजी अस्पतालों के जिम्में आता जा रहा है। इस कारण  नागरिकों की जेब पर खर्च भी बहुत पड़ रहा है। ये निजी अस्पताल सेवा कम और व्यवसाय अधिक कर रहे हैं। इन्हें रोगी की जीवनपद्धति और जीविका से कोई लेना-देना नहीं होता। वास्तव में तो ऐसे अस्पताल चाहते हैं कि मरीज को अधिक-से-अधिक समय तक अस्पताल में रोककर बिल बढ़ाया जाए। भविष्य में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की ऐसी मानसिकता में उलटफेर की संभावना नजर आ रही है।

  • उच्च तकनीकों की मदद से स्वास्थ्य सेवा की पहुंच आधुनिकतम उपचारों तक हो चुकी है। परंतु इसे सेवा से अभी भी नहीं जोड़ा जा सका है।
  • हमारी रूग्ण हो चुकी स्वास्थ्य सेवाओं को कभी भी जीर्ण रोगों के उपचार पर केंद्रित नहीं किया गया था। इन रोगों पर आज स्वास्थ्य बजट का 80% व्यय किया जा रहा है। स्वास्थ्य सेवा को अस्पताल के लाभ की दृष्टि से न देखकर, रोगी के लाभ की दृष्टि से देखने का समय आ चुका है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं का रुख इस प्रकार से मोड़े जाने की आवश्यकता है, जिससे रोगी अपने रोग की जड़ तक पहुंच सके। इस प्रकार वह उससे आसानी से निपट सकेगा।
  • अब मात्र रोग का उपचार करने के स्थान पर रोगी के संपूर्ण स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जा सकेगा। यह सब तकनीक की मदद से संभव हो सकेगा। विभिन्न उपकरणों की मदद से रोग पर निगरानी रखना रोगी के लिए आसान हो जाएगा। वह यथासंभव विशेषज्ञों की मदद ले सकेगा।
  • तकनीक की मदद से एक ही रोगी को एक समय पर अलग-अलग स्थान के विशेषज्ञ सलाह दे सकेंगे। इससे रोग का निदान जल्द होगा। इससे रोग की गंभीर स्थिति से बचने में मदद मिलेगी। अगले 10 वर्षों में यह एक सामान्य प्रक्रिया बन जाएगी।
  • हमारे देश की जनसंख्या को देखते हुए स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में तकनीकी निवेश की अपार संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। इसका लाभ रोगियों को मिलेगा। उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।
  • ऐसी तकनीके भी आ रही है, जिनका इस्तेमाल करके हर व्यक्ति रोगों के अपने आनुवांशिक इतिहास को जान सकेगा, और उसके अनुरूप अपनी जीवन-पद्धति को सुधार कर रोगों से बचाव कर सकेगा।
  • एल्गोरिदम के माध्यम से एक चिकित्सक रोगी के स्वास्थ्य इतिहास को अच्छी तरह समझ सकेगा। इससे उपचार तेजी से किया जा सकेगा। परिणाम भी बेहतर निकलेंगे।

इन सबके बीच हमें चरक संहिता के सिद्धाँतों को न भूलकर ‘चिकित्सक रोगी संबंध‘ एवं चिकित्सक के लिए मित्रता, रोगी के प्रति दया, अपनी क्षमता के अनुसार रोगों का इलाज और रोगी के ठीक होने के बाद उसके प्रति निष्क्रिय दृष्टिकोण आदि को सदैव साथ लेकर चलना होगा। भूत, भविष्य और वर्तमान में चिकित्सा का एक ही मूल सिद्धांत काम करता रहा है, और वह है- दया एवं रोगी-चिकित्सक के बीच का विश्वास। चिकित्सा जगत इसी सिद्धाँत पर टिक सकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित नरेश त्रेहन के लेख पर आधारित। 8 जून, 2018

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