बाघों में आनुवांशिक प्रवाह के लिए वनों को जोड़ें

Afeias
29 Sep 2017
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Date:29-09-17

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बाघों की घटती संख्या को देखते हुए बाघ-संरक्षण एक अहम् विषय बन चुका है। पर्यावरणविदों का कहना है कि बाधों के विलुप्त होने से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ेगा। पूरे विश्व में बाघों की कुल जनसंख्या का 60 प्रतिशत भाग भारत में है। ऐसे में भारत का उत्तरदायित्व और भी बढ़ जाता है।

फिलहाल भारतीय वन्यप्राणी संस्थान द सेंटर फॉर सेल्यूलर एण्ड मॉलिक्यूलर बॉयोलोजी, केरल जैसे संस्थानों ने भारत में बाघों को तीन श्रेणियों में बांटा है-दक्षिण भारत, मध्य भारत में तराई एवं उत्तर-पूर्वी भारत तथा रणथम्भौर के बाघ। इनमें से रणथम्भौर के बाघों में सबसे कम आनुवांशिक विविधता मिलती है और इसका कारण शायद उनका अन्य भागों से अलगाव है। बाघों में इस समस्या के कुछ कारण हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

 

  • अनेक अध्ययनों से यह प्रमाणित होता है कि बाघों का विकास दूरस्थ, एकांत एवं सघन वनों में ही उचित प्रकार से होता है। परन्तु बाघों के वयस्क होने पर उन्हें अपने साम्राज्य के रूप में नए वन की आवश्यकता होती है। अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए वे अत्यंत उग्र होते हैं, बड़े पशुओं का शिकार करते हैं एवं मनुष्यों से दूरी बनाकर रखते हैं।
  • ताजा अध्ययन बताते हैं कि अपने साम्राज्य की खोज में बाघ दूर-दूर तक का सफर तय करते हैं। जैसे रणथम्भौर के बाघों को भरतपुर, पीलीभीत के बाघों को लखनऊ में चिन्हित किया गया है।
  • आनुवांशिक रूप से एकांगी रहने वाले पशुओं में अवसाद जैसे अनेक रोग होने लगते हैं। फ्लोरिडा के पैंथर और भारतीय उल्लू के संबंध में यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है।
  • बाघ एक हिंस्र पशु है। वह जीवित रहने के लिए शिकार करता है। कमजोर होने पर वह मर जाता है। अतः बाघों की जनसंख्या को सशक्त रखने के लिए आनुवांशिक प्रवाह की बहुत ज्यादा जरूरत है।
  • प्रबंधन के युग में आज बाघों की संख्या को यथावत रखने के लिए हम उन स्थानों पर उनका स्थानांतरण कर देते हैं, जहाँ से वे विलुप्त हो चुके हैं। जैसे पन्ना और सरिस्का में किया गया। परन्तु इससे आनुवांशिक प्रवाह का मसला हल नहीं हो जाता।
  • बाघों को बचाने के लिए जंगलों को आपस में जोड़ना जरूरी है। जबकि आज पहले से ही स्थित अभ्यारण्यों का क्षेत्र कम हो रहा है या किया जा रहा है।

मध्यप्रदेश में केन-बेतवा नदियों को जोड़ने से पन्ना बाघ अभ्यारण का एक बड़ा भाग जलमग्न हो जाएगा। इसी प्रकार झारखंड में एक नई सिंचाई योजना के तहत बाघ अभ्यारण्य के अंतर्गत आने वाले तीन लाख पेड़ डूब जाएंगे। सरिस्का, कान्हा, कांजीरंगा आदि अभ्यारण्यों के बीच से राजमार्ग बनाए जाने की योजना के कारण उनका बहुत सा भाग इसकी भेंट चढ़ जाएगा।

  • बाघों के संरक्षण की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि वन विभाग के पास वनों के अतिरिक्त भूमि नहीं है, जहाँ वे अभ्यारण्यों का विस्तार कर सकें। इसके लिए राजनैतिक इच्छा शक्ति एवं अन्य शक्तियों को जोर लगाना होगा।
  • हाल ही में राजस्थान सरकार ने रणथम्भौर के बढ़ते बाघों के लिए मुकुन्दरा बाघ संरक्षण क्षेत्र बनाया है। अन्य राज्यों को भी अपने अभ्यारण्यों को विस्तार देने की आवश्यकता है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित नेहा सिन्हा के लेख पर आधारित।

 

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