
बाघ संरक्षण योजना पर एक अपडेट
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- ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की शुरुआत 1973 में भारत के इस राष्ट्रीय पशु पर मंडरा रहे खतरे से बाहर निकलने के लिए की गई थी।
- मार्च 2025 तक 58 संरक्षित क्षेत्र ऐसे हैं, जिन्हें टाइगर रिजर्व कहा जाता है।
- 2023 में भारत में बाघों की संख्या 3,682 थी। यह इनकी कुल वैश्विक संख्या का 75% है।
- मानव बस्तियों के वनों तक फैलने, सड़कों क विस्तार और चरम मौसम स्थितियों के कारण जंगलों में पानी की कमी से बाघों की बढ़ती संख्या आश्वस्त कर देने के लिए काफी नहीं है।
- एक जांच के अनुसार तीन वर्षों में 100 बाघों को मारा जा चुका है।
- संरक्षण प्रयासों की यात्रा आसान नहीं रही है। कई समूहों और कई स्तरों पर अधिकारियों ने नीतिगत उलटफेर को रोकने, पर्यावरण आकलन को रद्द करने, तथा प्रभावशाली पर्यटन सर्किट से दबाव का मुकाबला किया है। रिजर्व के अंदर तेल पाइपलाइन और रेल ट्रैक को लेकर अनेक संघर्ष हुए हैं।
- फिर भी बाघों की संख्या हमेशा खतरे में रहती है। आदिवासी समूहों के भीतर शिकारियों के लिए बाघों का शिकार आजीविका का एक विकल्प है।
- इसके अलावा बाघ संरक्षण कार्यकर्ता और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ताओं को यह समझना होगा कि यह दोनों का अधिकार क्षेत्र है। इसे तनाव में न बदलें।
- राज्यों के बीच समन्वय, उदार वित्तपोषण, समर्पित और प्रशिक्षित फील्ड स्टाफ से बाघों को संरक्षित किया जा सकता है। इससे उनका भविष्य खतरे में नहीं पड़ेगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 2 जून, 2025