सुन्दरवन का संरक्षण

Afeias
20 Jul 2017
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Date:20-07-17

 

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हाल ही में भारत में सुंदरवन क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा है। यह क्षेत्र विश्व में तीसरा बड़ा सदाबहार वन है। पारिस्थितिकीय तंत्र के संतुलन में भी इसकी बड़ी भूमिका है। अंग्रेजों के जमाने में खेती योग्य भूमि को बढ़ाने के लिए पहले ही इस वन का बहुत नाश किया जा चुका है। परन्तु अब समय आ गया है, जब हमें चेत जाना चाहिए और हर कीमत पर इसकी रक्षा करनी चाहिए। सुंदरवन का महत्व कई दृष्टिकोणों से है।

  • यह 10,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका विस्तार बांग्लादेश के भी कुछ भागों तक है। लाखों लोग भोजन, पानी एवं जंगली उत्पादों के लिए इस पर निर्भर करते हैं। जाधवपुर विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से सुंदरवन का पूरा क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। इसे बचाया जाना चाहिए।
  • सुंदरवन का बहुत-सा क्षेत्र राष्ट्रीय वन्य अभ्यारण के अंतर्गत संरक्षित है। यहाँ बाघों की एक विशिष्ट जाति के संरक्षण पर ध्यान दिया जा रहा है। यह जाति समुद्र और भूमि के इंटरफेस के इर्द-गिर्द आराम से विचरती रहती है।
  • यह क्षेत्र हिमालय से बहने वाली नदियों द्वारा लाए गए ताजे जल और अत्यधिक लवणता वाले जल का संगम है। यह द्वीप जैव-विविधता का भंडार है। परन्तु आज इसकी सिकुड़न से यह पारिस्थितिकीय तंत्र के नाश का नमूना बन गयी है। द्वीप के क्षेत्र में कमी आने से, जो गाद इसके भूक्षेत्र को बढ़ाने के काम आती थी, वह नदियों पर बाँध और बैराज के काम आ रही है।
  • यहाँ का स्थानीय वृक्ष़ सुंदरी नाव एवं पुल निर्माण के काम आता है। यह स्थानीय जनता की जीविका का बहुत बड़ा साधन है। पूरे विश्व में यह तीसरा बड़ा मैनग्रोव है। इसी के चलते यहाँ की आबादी क्रमशः घनी होती गई है।
  • अब सुंदरवन का भविष्य स्थानीय शासन द्वारा इसके किनारों के अपक्षरण को रोकने के प्रयासों और नीतियों पर निर्भर करता है।
  • स्थानीय स्तर पर ऐसी नीतियां बनाए जाने की आवश्यकता है, जो यहाँ के मानवीय विकास को गति दे सके, जिससे इन लोगों की जीविका प्राकृतिक संसाधनों के अलावा भी चल सके। इन वनों पर जीवन-यापन के भार को कम करक इन्हें बचाया जा सकेगा।
  • किनारों के अपक्षरण के लिए द नीदरलैण्ड मैरिट साइंटिफिक इवॉल्यूशन से प्रेरणा ली जा सकती है।
  • इसके लिए क्षेत्र विशेष के ऐसे पेड़ लाए जा सकते हैं, जो जल के खारेपन को बढ़ाने के साथ-साथ स्थानीय लोगों को लाभ पहुंचाए।
  • विशेष सावधानी रखते हुए इस क्षेत्र में पारिस्थितिकीय पर्यटन को बढ़ाया जा सकता है। इससे इस क्षेत्र के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ेगी। साथ ही क्षेत्र के संरक्षण के लिए निधि में भी इजाफा होगा।
  • विश्व में इसकी विशिष्ट पहचान को देखते हुए भारत और बांग्लादेश की ओर से विश्व जलवायु मंच पर क्षेत्र के संरक्षण के लिए आर्थिक मदद ली जा सकती है।
  • जलवायु पर शोध एवं अनुसंधान के द्वारा सुंदरवन को नष्ट होने से रोका जा सकता है। समाज विज्ञानी भी इसमें महती भूमिका निभा सकते हैं।

 

हिन्दू में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित।

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