आवश्यकता है अनौपचारिक मार्ग की

Afeias
11 Jul 2019
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Date:11-07-19

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भारत की आधी जनता 25 वर्ष से कम के युवाओं की है। इसमें हर वर्ष 18 की उम्र पर पहुँचने वाले एक करोड़ युवा जुड़ रहे हैं। इन सबके लिए रोजगार की व्यवस्था करना, सरकार के लिए एक चुनौती बनी हुई है। नीति आयोग ने ‘स्ट्रैटजी फॉर न्यू इंडिया@75’ नामक रिपोर्ट में इस तथ्य की ओर संकेत किए हैं कि प्रतिवर्ष कार्यबल में जुड़ने वाले युवाओं के लिए 80-90 लाख रोजगार के अवसर जुटाने जरूरी हैं। इसके अलावा कृषि क्षेत्र से गैर कृषि कर्म में आने वालों को भी रोजगार उपलब्ध कराने की चुनौती है।

कुछ तथ्य

  • कुछ अध्ययन बताते हैं कि भारत के 2008-09 के योजित सकल मूल्य में अनौपचारिक क्षेत्र का योगदान 54% रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार का प्रतिशत 81 रहा है।
  • 2018 के आर्थिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि 21% का कुल टर्न ओवर दिखाने वाली 97% फर्म अनौपचारिक हैं। ये कर के दायरे और सामाजिक सुरक्षा कानून के दायरे से बाहर हैं। अनौपचारिक क्षेत्र की इन फर्मों की बड़ी संख्या को देखते हुए इन्हें ईज ऑफ डुईंग बिजनेस और श्रम सुधारों के द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे इन्हें अर्थव्यवस्था की मजबूती का आधार और बेरोजगारी से लड़ने का हथियार बनाया जा सकता है।

प्रधानमंत्री द्वारा चलाई गई अनेक योजनाओं के साथ अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को आधार बनाकर तीन स्तर पर बेरोजगारी की समस्या से निपटा जा सकता है।

1. भारत में 44% कार्यबल (लगभग 50 करोड़ लोग) कृषि में लगा हुआ है। ये लोग योजित सकल मूल्य में मात्र 15% का योगदान दे रहे हैं। इस कार्यबल को स्थानांतरित किया जाना आवश्यक है। सरकार का लक्ष्य एक लाख डिजीटल गाँव बनाना है। ऑनलाइन ऑफलाइन कौशल विकास केन्द्रों के माध्यम से युवा पीढ़ी को पारंपरिक शिल्प, कृषि के लाभकारी उत्पादों आदि के उद्यमों के लिए तैयार करना है। इससे शहरों में बढ़ती भीड़ को भी रोका जा सकेगा। ई-कॉमर्स और संगठित खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से ग्रामीण वस्तुओं की बिक्री आसान हो सकती है।

2. देश की उच्च शिक्षा तक केवल 26% युवा पहुँच पाते हैं। अतः उच्चतर माध्यमिक स्तर पर ही उद्यमिता से जुड़ी शिक्षा देकर युवाओं को रोजगार के लिए तैयार किए जाने की आवश्यकता है। कुछ राज्यों ने ऐसी पहल की है।

प्रशिक्षुओं को काम पर लेने के लिए भी अनिवार्य कानून बनाया जाना चाहिए। प्रत्येक संगठन में कम से कम 4-5% प्रशिक्षु लिए जाएं। इनमें से आधे ऐसे हों, जो उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं। इससे युवाओं को स्व-उद्यमिता के लिए भी जल्द तैयार किया जा सकेगा।

3. 2011-18 की एक रिपोर्ट के अनुसार उच्च शिक्षा में पंजीकृत 36.4% विद्यार्थी मानविकी, कला और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों से संबंद्ध हैं। इन विषयों का पाठ्यक्रम उन्हें उद्योगों में रोजगार के लिए तैयार नहीं करता है।

2018 में इंडिया स्किल की रिपोर्ट बताती है कि उच्च शिक्षा प्राप्त कर निकले 53% युवा बेरोजगार हैं, और रोजगार के लायक नहीं हैं। राष्ट्रीय कौशल विकास नीति का अनुमान है कि केवल 5% भारतीय कार्यबल ने ही इस नीति के माध्यम से प्रशिक्षण लिया है। दक्षिण कोरिया (96%) और जर्मनी (75%)  की तुलना में यह अत्यंत कम है। अगर कौशल विकास का कुछ भाग उच्च शिक्षण संस्थानों को सौंप दिया जाए, तो इसका लाभ उठाने वाले युवाओं की संख्या बढ़ सकती है।

पारंपरिक औपचारिक अर्थव्यवस्था वाले मार्ग से हटकर अन्य साधनों को अपनाना होगा। तभी हम बेरोजगारी को नियंत्रण में रख सकते हैं।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित सचिन जैन के लेख पर आधारित। 28 जून, 2019

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