नए क्षितिज

Afeias
10 Jul 2019
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Date:10-07-19

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आगामी कुछ वर्षों में अपना अंतरिक्ष स्टेशन बनाने पर काम कर रहा है। इस अंतरिक्ष स्टेशन को सीमित परिधि में सीमित उपयोगिता के साथ तैयार किया जाएगा। यह पृथ्वी से 400 कि.मी. ऊपर एक कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इसरो ने इस बात के भी संकेत दिए हैं कि इस पर काम की शुरूआत, उसके 2022 में अंतरिक्ष में मानव को भेजने के अभियान के बाद की जाएगी। फिलहाल इसरों ने डॉकिंग जैसे कई अन्य तरह के प्रयोगों पर प्रस्ताव आमंत्रित करने शुरू कर दिए हैं।

ज्ञातव्य हो कि पिछले कुछ वर्षों में इसरो ने पी एस एल वी रॉकेट पर अनेक प्रयोग करने में सफलता प्राप्त की है। इसका परिणाम है कि आज एक पीएसएल के रॉकेट विभिन्न कक्षाओं में उपग्रहों को सफलतापूर्वक स्थापित कर रहा है। इस रॉकेट का प्रक्षेपण चार चरणों में किया जाता है। दो अवसरों पर इसरो ने चैथे चरण को (पी एस 4 के) कक्षा की प्रयोगशाला के रूप में बदल दिया। सामान्यतः ऐसी प्रयोगशालाएं अंतरिक्ष स्टेशन में बनाई जाती हैं।

इसरो का अंतरिक्ष स्टेशन बनाने का कार्य अभी शुरुआती दौर में है। इससे जुड़े कई प्रश्न हैं, जिन पर इसरो का खुलकर सामने आना अभी बाकी है।

          1. क्या भारत ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना के प्रयोग में भाग नहीं लिया था ?

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का अस्तित्व 2024-28 तक ही माना जा रहा है। भारत ने इस मिशन में भाग नहीं  लिया था, क्योंकि सरकारी परमाणु नीति इसकी अनुमति नहीं देती थी। 2011 में एक्सपोर्ट कंट्रोल लिस्ट से इसरो और डीआरडीओ को बाहर किया गया था।

2. अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़े माइक्रोग्रेविटी प्रयोग के वैज्ञानिक लाभ क्या होंगे ?

इस प्रयोग से वैज्ञानिक समुदाय को खगोल विज्ञान, मौसम विज्ञान, जीव विज्ञान और मेडिसीन जैसे विषयों पर अनुसंधान करने का अवसर प्राप्त होगा। इस प्रयोग की सामग्री पर भारत को भारी निवेश करना पड़ सकता है। अतः हमारे वैज्ञानिकों द्वारा किए जाने वाले अनुसंधान के व्यावसायिक और रणनीतिक लाभ हो सकते हैं।

3. भारत ने छोटे अंतरिक्ष स्टेशन की योजना क्यों बनाई है ?

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, 16 देशों की संयुक्त योजना है। यह 400 टन का स्टेशन है। चीन द्वारा प्रस्तावित स्टेशन 80 टन का है। भारत ने 20 टन के ऐसे स्टेशन की योजना प्रस्तावित की है, जिसमें अंतरिक्ष यात्री 15 से 20 दिन रह सकें।

तो क्या भारत को एक बड़े स्टेशन की योजना पर विचार नहीं करना चाहिए, जहाँ वैज्ञानिक ज्यादा समय तक रह सकें ?

भारत को पूर्व में किए गए चंद्र और मंगल मिशन के अनुभवों को याद रखना चाहिए। इन मिशनों के वैज्ञानिक प्रयोगों की एक सीमा थी, क्योंकि उस समय तक भारत का हैवी सेटेलाइट लॉन्च वेहिकल जीएसएलवी, तैयार नहीं था, जो भारी साइंटिफिक पेलोड ले जा सकता। अब इसरो ने क्रायोजेनिक तकनीक पर काम करके अगले दशक तक पृथ्वी की निचली कक्षा में भारी पेलोड भेजने की तैयार कर ली है।

4. क्या भारत की यह योजना आर्थिक रूप से व्यावहारिक ठहरती है ?

भारत के लिए यह महंगा सौदा है। अतः इसमें निजी क्षेत्र को शामिल किया जाना चाहिए। हाल ही में नासा ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को व्यावसायिक लाभ के लिए खोलने की घोषणा की है। भारत भी ऐसी योजनाओं के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का तरीका अपना सकता है।

अंतरिक्ष स्टेशन जैसी योजनाएं राष्ट्रीय स्तर की योजनाएं है। भले ही इनसे तत्काल वैज्ञानिक या तकनीकी लाभ न मिल सके, परन्तु इनमें निवेश की निरंतरता बनी रहनी चाहिए। ऐसी योजनाओं में भागीदारी के लिए निजी उद्योगों को प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित अजय लेले के लेख पर आधारित। 18 जून, 2019

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