पश्चिमी एशियाई देशों के प्रति भारतीय कूटनीति

Afeias
14 Mar 2019
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Date:14-03-19

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पिछले कुछ वर्षों में भारत ने पश्चिम एशिया के देशों जैसे-इजरायल, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की ओर संबंधों के विस्तार की जो नीति अपनाई है, उसे देखकर ऐसा लगता है कि भारत इन देशों के प्रति एक संतुलन रखने की अपनी परंपरागत नीति से अलग हटकर आग बढ़ने का प्रयत्न कर रहा है। हाल ही में सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान के दिल्ली आगमन और इजरायली प्रधानमंत्री के आगामी आगमन को देखते हुए ऐसा लगता है कि भारत ईरान को कुछ अलग रखकर अपनी नीतियां तय कर रहा है। पश्चिमी एशियाई देशों के प्रति भारत के इस बदलते रुख से जुड़े अन्य कुछ तथ्य इस प्रकार हैं –

  • 1990-91 के खाड़ी युद्ध के समय से ही भारत ने पश्चिमी एशियाई देशों के मामले में अहस्तक्षेप की नीति अपनाते हुए एक प्रकार का संतुलित दृष्टिकोण अपना लिया था।

भू राजनैतिक दृष्टि से देखें, तो संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के युवराजों ने पिछले कुछ वर्षों में इस्लामिक उग्रवादी संगठनों के खिलाफ एक तरह का मोर्चा बना लिया है। यही कारण है कि समान उद्देश्य को लेकर चलते हुए भारत से उनकी नज़दीकी बढ़ती जा रही है। हाल ही के अपने भारतीय दौरे में सऊदी अरब के युवराज ने हर स्थिति में भारत का साथ देने के प्रति अपना मंतव्य व्यक्त किया। पिछले कुछ महीनों में अगस्ता वेस्टलैण्ड से संबंधित तीन आरोपियों का संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यर्पण किया गया है। यह भी भारत-पश्चिमी एशियाई देशों के बीच के संबंधों का शुभ सूचक है।

  • इसी बीच भारत ने इजरायल के साथ भी सैन्य एवं सुरक्षा संबंधी अनेक समझौते कर लिए हैं, जो भारत को आधुनिक बनाने की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सन् 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भी इजराइल ने पाकिस्तान के मोर्चों के बारे में अनेक खुफिया जानकारी देकर भारत की मदद की थी। वर्तमान में, इजरायल भारत को सैन्य तकनीकी आपूर्ति करने वाला प्रमुख देश है।
  • आर्थिक रूप से, तेल की कम कीमतों के बावजूद, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की निवेश करने की क्षमता, भारत के साथ उनके संबंधों की एक बड़ी संपत्ति है। इस निवेश में 44 अरब डॉलर का एक तेल शोधन संयंत्र शामिल है, जो भारत के ही संघ की साझेदारी में लगाया जाना है। आने वाले वर्षों में भी सऊदी अरब ने भारत में लगभग 100 अरब डॉलर के निवेश के संकेत दिए हैं।

रियाद में इस बात की घोषणा भी की गई है कि भारत उन आठ देशों में है, जिनसे वह विभिन्न क्षेत्रों में रणनीतिक समझौता करना चाहता है।

  • ईरान द्वारा ईस्लामिक आतंकियों को मदद दिए जाने से इजरायल के साथ उसका तनाव रहा है। इसके चलते सीरिया में ईरान के ठिकानों पर बमबारी भी की गई। हाल ही में ईरान रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉपर्स के 27 सदस्यों और पुलवामा के हमले के कारण भारत और ईरान पाकिस्तान के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं।

अमेरिका ने ईरान पर अनेक आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए हैं। भारत ने इसमें अमेरिका से छ माह की छूट ली है, और उसे अब ऊर्जा के लिए किसी वैकल्पिक स्रोत की तलाश है।

भारत ने ईरान से चाबहार पोर्ट समझौता करके कच्चे तेल के निर्बाध आयात की तैयारी कर रखी है। यह बंदरगाह भारत के लिए रणनीतिक और सामरिक महत्व भी रखता है। लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद अब भारत को इससे होने वाले लाभ को लेकर आशंका होने लगी है।

पश्चिम एशियाई देशों में ईरान के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। वह अफगानिस्तान में तालिबान को अमेरिका के विरुद्ध खड़ा करने का प्रयास जारी रख सकता है।

इजरायल, सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात ने ईरान का विरोध करते हुए अमेरिका द्वारा प्रायोजित मिडल ईस्ट सिक्योरिटी अलांयस (एम ई एस ए) बना लिया है। भारत के लिए दोनों दलों के बीच एक संतुलन बनाकर चलना मुश्किल काम है। फिर भी भारत ने ईरान को किनारे करके अन्य पश्चिम एशियाई देशों के प्रति जिस रुझान का संदेश दिया है, उससे आने वाले समय में आर्थिक व रणनीतिक लाभ की उम्मीद की जा सकती है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित हर्ष वी.पंत और हसन अलहसन के लेख पर आधारित। 22 फरवरी, 2019