दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का हित साधता क्वाड
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हाल ही में जी-7 समूह की बैठक के इतर क्वाड समूह (आस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका) के नेताओं ने भी अपनी बैठक की है। इसका मुख्य फोकस क्षेत्र में चीन के वर्चस्व के अलावा अन्य अनेक चुनौतियों से निपटने पर रहा है।
कुछ बिंदु –
- दक्षिण पूर्व एशिया में क्वाड के प्रति रवैया आमतौर पर एयूकेयूएस (आस्ट्रेलिया, यू.के. और अमेरिका के बीच हुई त्रिपक्षीय संधि) की तुलना में अधिक सकारात्मक है, क्योंकि क्वाड एक सुरक्षा और रक्षा प्रौद्योगिकी-साझेदारी व्यवस्था से कहीं अधिक है। यह क्षेत्रीय समृद्धि के लिए बहुत जरूरी सार्वजनिक वस्तुओं की उपलब्धता का वादा करता है, जैसे-महामारी के दौरान टीकों की व्यवस्था करना।
- 2017 में क्वाड के पुनर्जन्म के साथ यह स्पष्ट था कि वह मौजूदा क्षेत्रीय तंत्रों के साथ काम करके इंडो-पैसिफिक में लचीलापन बनाना चाहता है। इसी के चलते 2020 के अपने बयान के बाद से ही क्वाड नेता आसियान की केंद्रीयता, आसियान के नेतृत्व वाली संरचना और भारत-प्रशांत पर आसियान दृष्टिकोण पर टिके हुए हैं, जिससे स्थिर और लचीले भारत-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा सके।
- इस पूरे क्षेत्र में समुद्री क्षमता के निर्माण पर, क्वाड ने इंडो पैसिफिक समुद्री डोमेन जागरूकता पहल की है। इसके माध्यम से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का प्रौद्योगिकी में सहयोग किया जा सकता है।
- अब जलवायु परिर्वतन जैसे अन्य मुद्दों को कवर करने की बात हो रही है। ऐसा कहा जा रहा है कि दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के बीच अधिक सहयोग के लिए एक वर्किंग कमेटी बनाई जानी चाहिए।
- इस समिति को क्षेत्र के देशों के साथ अलग-अलग समन्वय बनाने यानि द्विपक्षीय जुड़ाव की दृष्टि से काम करना होगा। इससे लचीलेपन के निर्माण के लिए अधिक सहयोग मिल सकेगा।
- क्वाड को मौजूदा आसियान कार्यक्रमों के साथ और अधिक काम करने पर भी विचार करना चाहिए। आसियान एक संस्था है, जिसे दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए।
यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इस क्षेत्र को क्वाड जो भी समर्थन दे, वह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के हित और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए दे। इससे क्वाड अपनी चीन विरोधी समूह की छवि से बाहर निकलकर, क्षेत्र का वास्तविक हित कर सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित तीस्ता प्रकाश और गन्ना प्रियंदिता के लेख पर आधारित। 21 मई, 2023
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