दक्षिण एशियाई देशों की सहयोग संभावना

Afeias
19 Jul 2019
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Date:19-07-19

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विश्व की 3.5 प्रतिशत भूमि और लगभग एक-चैथाई जनसंख्या के साथ दक्षिण एशिया, अंतरराष्ट्रीय विकास मंच पर महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके देशों की भौगोलिक समीपता और सामाजिक-सांस्कृतिक साम्य के बावजूद इनमें बहुत ही कम समन्वय है। ये देश विश्व व्यापार की तुलना में मात्र 5 प्रतिशत का व्यापार अपने निकट देशों के साथ करते हैं। पूरे क्षेत्र के वैश्विक निवेश को देखें, तो उसका केवल एक प्रतिशत निवेश, ये आसपास के देशों में करते हैं। वैश्विक औसत की तुलना में दक्षिण एशियाई देशों का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद मात्र 9.64 प्रतिशत है। विश्व की 30 प्रतिशत गरीबी इस क्षेत्र में है। इस क्षेत्र के लिए अनेक आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियाँ है।

पहल की कमी

इस क्षेत्र के देश आर्थिक विकास की समान चुनातियों का सामना करते हैं। इसके बावजूद इनके बीच सहयोग बहुत कम है। इस मामले में बिम्सटेक और बीबीआईएन ही दो ऐसे उपक्रम हैं, जिन्हें देशों को आर्थिक और सामाजिक रूप से एक दूसरे के नजदीक लाने के उद्देश्य से शुरू किया गया है।

इन देशों में असमानता, गरीबी, कमजोर प्रशासन और ढांचों की कमी से जुड़ी समान समस्याएं हैं, जो 2030 के धारणीय विकास लक्ष्य को पूरा करने के लिए सहयोग, समन्वय और समानता की मांग करती है। इसके 17 लक्ष्य और उनके 169 प्रयोजन, आपस में संबंद्ध हैं, और अलगाव में काम करने वाले देशों की पहुंच से बाहर हैं।

धारणीय विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए 156 देशों में बने सूचकांक में दक्षिण एशिया के केवल दो देश भूटान और श्रीलंका ही 100 देशों में अपना स्थान बना पाए हैं। भारत का स्थान 112वां है।

अधिकतर दक्षिण एशियाई देशों ने गरीबी को कम करने में अच्छी प्रगति की है, परन्तु उद्योग, नवाचार, बुनियादी ढांचा, भुखमरी, लैंगिक समानता, शिक्षा, रोजगार, नगरों के विकास आदि क्षेत्रों में वे अभी भी अनेक पहलुओं पर पीछे हैं। ये देश जलवायु परिवर्तन और उससे जन्मी प्राकृतिक आपदाओं के निशाने पर भी हैं।

क्या करना चाहिए ?

दक्षिण एशिया में पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश के बीच धारणीय विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आ रही चुनौतियों में बहुत समानता है।

इन देशों के अलावा अन्य देशों के बीच भी अगर क्षेत्रीय रणनीतिक पहल की जाए, तो सभी देशों के प्रयास और धन की बचत हो सकती है।

ऊर्जा, जैव विविधता, लचीलापन, बुनियादी ढांचा और क्षमता विकास ऐसे लक्ष्य हैं, जो एक देश में विकसित नीति और तकनीक का दूसरे देशों में प्रयोग करके कम समय में प्राप्त किए जा सकते हैं।

उदाहरण के लिए बांग्लादेश ने धारणीय विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपलब्ध संसाधनों और अतिरिक्त धन की आवश्यकता पर एक अध्ययन करवाया था। इससे पता चला है कि निजी क्षेत्र, सार्वजनिक क्षेत्र, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप, एक्सटर्नल सैक्टर और गैर सरकारी संगठन, वित्त पोषण में खासी मदद कर सकते हैं।

इसी प्रकार भारत ने खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए कुछ व्यावहारिक नीतियां बनाई हैं। नीति का लाभ लेकर पड़ोसी देश भी अपना विकास कर सकते हैं।

संस्थागत और ढांचागत कमी को दूर करने के लिए दक्षिण एशियाई देशों को परस्पर गहरे सहयोग की आवश्यकता है। क्षेत्र की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इन देशों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बहाव पर अंतर्क्षेत्रीय सहयोग करने होंगे। संसाधनों की गतिशीलता को बनाए रखने में निजी क्षेत्र भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

दक्षिण एशियाई क्षेत्र, विश्व का सबसे तेजी से विकसित होता हुआ क्षेत्र है। इन देशों में क्षेत्रीय एकता और सहयोग के साथ, गरीबी उन्मूलन और सबके विकास के लिए सहक्रियात्मक प्रभाव उत्पन्न करने की शक्ति है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित सैय्यद मुनीर खसरु के लेख पर आधारित। 22 जून, 2019

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