इस्लामिक सहयोग संगठन की कूटनीति और भारत

Afeias
26 Mar 2019
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Date:26-03-19

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हाल ही में संपन्न हुए इस्लामिक सहयोग संगठन के विदेश मंत्री सम्मेलन में भारतीय विदेश मंत्री को विशेष आमंत्रण पर बुलाया गया था। भारत के लिए यह कुछ दृष्टिकोणों से अत्यधिक महत्वपूर्ण रहा है।

  1. पाकिस्तान इस संगठन का संस्थापक देश है। इस सम्मेलन में भारत को आमंत्रित करने का उसका सदा ही विरोध रहा है।
  2. संगठन के देशों ने पाकिस्तान के अड़ियलय रवैये की परवाह न करते हुए भारत को आमंत्रित किया। इस पर पाकिस्तान ने सम्मेलन का बहिष्कार किया।
  3. संगठन में पाकिस्तान के पुराने मित्रों सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने इस मामले में पाकिस्तान की नहीं सुनी।
  4. संगठन में भारत ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को घेरने में सफलता प्राप्त की।

संगठन की कूटनीति

  • एशिया की बढ़ती परिस्थितियों में संगठन ने न तो भारत को नाराज किया, न ही पाकिस्तान को। कश्मीर मसले पर भारत के विरूद्ध एक प्रस्ताव पारित करवाने में पाकिस्तान ने सफलता प्राप्त कर ही ली। हालांकि इस मामले को अबूधाबी घोषणा में शामिल नहीं किया गया।
  • कई सुन्नी इस्लामिक देशों के लिए पाकिस्तान की सैन्य शक्ति और भूगोल महत्वपूर्ण है। कश्मीर पर प्रस्ताव पारित करके उन्होंने सिद्ध कर दिया कि भारत की कीमत पर वे पाकिस्तान को नाराज नहीं करना चाहते हैं।
  • पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठन कई इस्लामिक देशों के लिए बड़ा खतरा हैं। पूरी दुनिया में आतंकवाद की जड़ बहावी इस्लाम को सऊदी अरब ने ही भारी संरक्षण दिया है। लेकिन अब बहावी, और कट्टर इस्लाम को संरक्षण देने वाले सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के राज परिवारों को इस विचारधारा से खतरा महसूस हो रहा है। इन राज परिवारों की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए आतंकी संगठनों के साथ-साथ मुसलिम ब्रदरहुड ने काफी लंबे समय से आंदोलन चला रखा है। मुस्लिम ब्रदरहुड ऐसा संगठन है, जिसने कुछ अफ्रीकी देशों में सत्ता परिवर्तन को लेकर सफल आंदोलन चलाया है, और अब इसका निशाना एशियाई इस्लामिक देश है।
  • भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत के चलते दो मुख्य इस्लामिक देशों को भारत में ऊर्जा का बड़ा बाजार दिख रहा है। ये दोनों ही देश नहीं चाहते कि भारत ईरान के ज्यादा नजदीक हो जाए।

भारत के माध्यम से ये देश अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता भी लाना चाहते हैं। भारत एक बहुलवादी प्रजातांत्रिक सहिष्णु और धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र की छवि का धारक है। ऐसे में भारत से संबंध बनाकर इन देशों की धार्मिक कट्टरता की छवि को संतुलित बनाया जा सकता है।

भारत को क्या करना चाहिए ?

  • इस्लामिक संगठन के देशों के बीच ही आपस में भारी विरोध है। ईरान में सुन्नी मुसलमानों और सऊदी अरब में शिया अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले लगातार सुनने में आते हैं। ईरान और सऊदी अरब के बीच यमन में सैन्य टकराव लगातार चलता रहता है। सऊदी अरब और यूएई का विरोध कतर से भी है। पाकिस्तान में भी शिया लोगों का उत्पीड़न किया जाता है। लेकिन इस्लामिक सहयोग संगठन में इन समस्याओं का कोई हल नहीं निकल पाता।
  • संगठन के देश चाहेंगे कि भारत ईरान से दूरी बनाए, लेकिन ईरान के चाबहार में भारत का भारी निवेश है। ईरान भारत के लिए अफगानिस्तान में जाने का रास्ता भी दे रहा है। इसलिए भारत को सुन्नी इस्लामिक राष्ट्रों की कूटनीति को समझकर कदम उठाना होगा।
  • हाल के कुछ वर्षों में भारत की पश्चिमी एशिया, खाड़ी क्षेत्र, मध्य एशिया, दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे इस्लामिक देशों के साथ जिस प्रकार की रणनीतिक साझेदारी हुई है, उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि भारत ने पड़ोसियों से आगे बढ़ते हुए हिन्द-प्रशांत महासागर क्षेत्र में संबंधों का महत्वपूर्ण विस्तार किया है। इससे चीन के बढ़ते प्रभुत्व पर लगाम कसने में भी मदद मिल रही है।

भारत ने अनेक देशों के साथ रक्षा, सुरक्षा एवं आतंक विरोधी सहयोग समझौते किए हैं। भारत-अरब लीग सम्मेलन और भारत-उत्तर अफ्रीका सम्मेलन के होने की खबरें हैं। इन सबसे भारत की शक्ति में निश्चित रूप से बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद है।

समाचार पत्रों पर आधारित।

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