कुपोषण की समस्या जारी है

Afeias
27 Mar 2019
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Date:27-03-19

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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के बच्चों के पोषण सूचकांक में भारत की स्थिति सुधरी है, फिर भी विश्व सूचकांक में अभी भी देश में पोषण की स्थिति को चिंताजनक कहा जा सकता है। इस स्थिति को कहाँ, कैसे और किनके माध्यम से ठीक किया जा सकता है, यह विचारणीय है।

  • गर्भवती महिलाओं और शिशु को दूध पिलाने वाली महिलाओं के खान-पान पर ध्यान दिया जाना चाहिए। दो साल तक के बच्चों के पोषण स्तर पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि इसी दौरान उसका शारीरिक, मानसिक और संज्ञानात्मक विकास होता है।
  • पाँच वर्ष तक की उम्र के 38 प्रतिशत बच्चे बौने हैं। इनके लिए वित्तीय सुविधाओं का विस्तार और लक्ष्य आधारित पहुंच की आवश्यकता होगी।
  • सर्वेक्षण में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड आदि राज्यों के कुछ जिलों की पहचान की गई है, जहाँ बच्चों में पोषण की अधिक कमी पाई गई है। अतः इन जिलों को धनराशि दिए जाने की आवश्यकता है। इन जिलों में भी तहसील और ताल्लुका स्तर पर पोषण की खराब स्थिति वाले क्षेत्रों को पहचाना जाना चाहिए। उप जिला स्तर पर सही आंकड़े एकत्रित करके नीतियों को चलाया जाना चाहिए।
  • चुने हुए क्षेत्रों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पोषण पर सार्वजनिक कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए। इन कार्यक्रमों में मातृत्व, स्तनपान एवं शिशु आहार को लक्ष्य बनाकर काम किया जाना चाहिए।
  • सशक्त सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्य सुरक्षा की गारंटी तय की जानी चाहिए।
  • खुले में शौच को रोकने के अलावा स्वच्छता पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे बीमारियां कम होंगी, तो बच्चों के विकास का स्तर अच्छा रहेगा।
  • लड़कियों की शिक्षा के स्तर को बढ़ाया जाना चाहिए। उनके लिए कौशल विकास और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। इस प्रकार उन्हें औपचारिक अर्थव्यवस्था का भाग बनाने से वे परिवार के पोषण पर अधिक ध्यान दे सकती हैं।
  • नीतियों की सफलता के लिए एक सशक्त सार्वजनिक सेवा प्रदाता तकनीक की जरूरत है। इसके लिए समर्पित विशेषज्ञों की जरूरत होगी, जो राजनैतिक इच्छा शक्ति और प्रशासनिक निष्ठा से पूरी हो सकती है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित वेंकटेश रमानी के लेख पर आधारित।

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