कुपोषण-मुक्त भारत की ओर बढ़ते कदम

Afeias
17 May 2019
A+ A-

Date:17-05-19

To Download Click Here.

भारत में कुपोषण की दर बहुत ज्यादा है। 1975 में बाल विकास के लिए चलाए जा रहे एकीकृत प्रयासों के बावजूद पर्याप्त पोषण और बच्चों के बौनेपन से जुड़ी चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। बच्चों का बौनापन एक ऐसी समस्या है, जो मानव-पूंजी, गरीबी और न्याय सभ्यता पर दूरगामी प्रभाव डालता है। इसके कारण बच्चे उम्र के अनुसार शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते, और आगे चलकर यह उनके व्यावसायिक अवसरों में अवरोध उत्पन्न करता है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार भारत में बच्चों के बौनेपन की समस्या गंभीर है। 2015-16 में 38.4 प्रतिशत बच्चे बौनेपन का शिकार थे और 35.8 प्रतिशत बच्चों का वजन कम था। मानव पूंजी सूचकांक के 195 देशों में भारत का स्थान 158वां है। विश्व बैंक का मानना है कि बच्चों में बौनेपन के कारण वयस्क होने पर उनकी 1 प्रतिशत कम ऊँचाई से आर्थिक उत्पादकता में 1.4 प्रतिशत की हानि होती है।

  • भारत ने इस समस्या से उबरने के लिए कमर कस रखी है। लेकिन रास्ता इतना आसान नहीं है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में बौनेपन की समस्या अधिक है। इसका कारण इन क्षेत्रों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बताया जाता है। इस समस्या के लिए माता का शैक्षणिक स्तर भी जिम्मेदार है। शिक्षित माताएं संतुलित खानपान के लाभों को बेहतर समझती हैं, लेकिन इसके साथ परिवार की आय भी मायने रखती है।
  • भौगोलिक क्षेत्रों के अनुसार भी समस्या की गंभीरता को कम-ज्यादा आंका जा रहा है। बिहार, उत्तरप्रदेश और झारखंड की तुलना में गोवा एवं केरल में समस्या बहुत ही कम है। हालांकि पोषण के स्तर में सुधार हो रहा है। परन्तु राज्यों के स्तर में बहुत भिन्नता से हो रहा है। इस मामले में छत्तीसगढ़ ने काफी सुधार किया है। तमिलनाडु में सबसे कम सुधार हुआ है।
  • अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के अनुसार तो बौनेपन की समस्या में जिलेवार भिन्नता भी देखने को मिलती है। लगभग 40 जिलों में ये 40 प्रतिशत अधिक है। इसमें उत्तर प्रदेश के जिलों में समस्या सबसे ज्यादा है।

महत्वाकांक्षी लक्ष्य

  • 2017 की राष्ट्रीय पोषण रणनीति का लक्ष्य 2022 तक भारत को कुपोषण से मुक्त करना है। इस योजना में 2022 तक प्रतिवर्ष 0-3 वर्ष के बच्चों में 3 प्रतिशत की दर से समस्या को कम करने का लक्ष्य रखा गया है। साथ ही किशोरों और वयस्क किशोरियों में रक्त्ताल्पता का प्रतिवर्ष एक-तहाई कम किया जाएगा।
  • इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य की प्राप्ति में कुछ सफलता भी मिली है। 2006 के 48 प्रतिशत बौनेपन की दर गिरकर 2016 में 38.4 हो गई है। इससे सबंधित डाटा स्पष्ट बताते हैं कि किस प्रकार शिशुओं को प्रसव के एक घंटे के अंदर ही माँ का दूध मिलना चाहिए, छः माह तक माँ का दूध ही दिया जाना चाहिए, इसके बाद उनको संतुलित और हल्का भोजन दिया जाना चाहिए। कुछ प्राथमिक स्तरों पर सुधार के बावजूद पौष्टिक भोजन की अभी भी कमी है। विटामिन ‘ए‘ की कमी से बच्चों में डायरिया और खसरा होने का डर होता है। करीब 40 प्रतिशत बच्चों को अभी भी पर्याप्त टीकाकरण और विटामिन ‘ए‘ की खुराक नहीं मिल पाती है। इसके चलते उनका विकास अवरूद्ध हो रहा है।

माता के गर्भवती होने से लेकर बच्चे की पाँच वर्ष तक की उम्र तक के स्वास्थ्य और पोषण कार्यक्रम का प्रसार करने की आवश्यकता है। इस मामले में सामाजिक-आर्थिक सोच बदलने पर काम किया जाना चाहिए। साथ ही कार्यक्रम के कार्यान्वयन और परिणामों के लिए उचित निरीक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। इन सबके साथ लक्ष्य की प्राप्ति असंभव नहीं रह जाएगी।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित शोभा सूरी के लेख पर आधारित। 30 अप्रैल, 2019

Subscribe Our Newsletter