कुपोषण मुक्त भारत

Afeias
29 Oct 2018
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Date:29-10-18

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1991 के बाद से भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। इसके बावजूद विश्व के एक तिहाई कुपोषित बच्चे भारत में रहते हैं। भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के 44 प्रतिशत बच्चों का वजन कम है। 72 प्रतिशत शिशुओं और 52 प्रतिशत विवाहित महिलाओं को खून की कमी है। भारत में कुपोषण का स्तर अफ्रीका के कुपोषण पीड़ित सहारा के उपनगरों से भी बदतर है।

कारण

(1) भारत में कुपोषण का एक बड़ा कारण आर्थिक असमानता है। गरीब लोगों के भोजन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों ही कम है।

(2) माताओं के कुपोषित होने का प्रभाव नवजात शिशुओं में देखने को मिलता है। जैसा कि ऊपर भी बताया जा चुका है, बड़ी संख्या में महिलाएं खून की कमी से पीड़ित हैं। इसका कारण कम उम्र में कन्याओं का विवाह किया जाना है। जल्दी विवाह के कारण बच्चे भी जल्दी होते हैं। ज्ञान के अभाव में बच्चों के बीच अंतर कम रखा जाता है।

(3) भारत में लगभग 11.5 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं। लेकिन यह आंकड़ा जन-सामान्य एवं नीति-निर्माताओं को अधिक प्रभावित नहीं करता है। जबकि भारत जैसे श्रम-प्रधान देश में इस पर ध्यान दिया जाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

वर्तमान प्रधानमंत्री ने कुपोषण से होने वाले व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक नुकसान का संज्ञान लेते हुए 15 अगस्त के अपने भाषण में कुपोषण मुक्त भारत को केन्द्रीय विषय रखा, और इसके लिए अपनी सरकार की ओर से प्रतिबद्धता दिखाई है।

प्रयास

  • कुपोषण की समस्या से छुटकारा पाने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। इस तथ्य को महत्व देते हुए प्रधानमंत्री ने हाल ही में आंगनबाड़ी एवं आशा कार्यकर्ताओं से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए ‘संवाद’ किया। यह पहला मौका था, जब किसी प्रधानमंत्री ने इन कार्यकर्ताओं से इस प्रकार बातचीत की हो। निचले स्तर पर महिलाओं एवं बच्चों को जीवनदान देने एवं उनके जीवन स्तर को सुधारने के लिए इन कार्यकर्ताओं की प्रशंसा करने के साथ ही, उनके वेतनमान में वृद्धि की घोषणा भी की। तीन हजार प्रतिनिधि कार्यकर्ताओं को उनके नाम से संबोधित करते हुए बातचीत के इस प्रयास का प्रभाव, उनसे जुड़े 34 करोड़ लोगों पर पड़ेगा।
  • प्रधानमंत्री द्वारा समर्थित ‘पोषण कार्यक्रम‘ की शुरूआत की गई है, जिसमें भाजपा शासित राज्यों के अधिकांश मुख्यमंत्रियों को शामिल होने का एक तरह से आदेश दिया गया। ज्ञातव्य हो कि उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में ही कुपोषण की समस्या अधिक है।
  • नीति आयोग ने इस दिशा में गति दिखाते हुए सितम्बर माह को ‘पोषण’ केन्द्रित बनाकर इस क्षेत्र से जुड़ी यूनीसेफ, टाटा ट्रस्ट, आई एफ पी आर आई एवं अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर तेजी से काम शुरू कर दिया है।
  • सरकार ने कुपोषण को कम करने के लिए वार्षिक लक्ष्य तय कर लिए हैं। अब समय है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के छः वर्ष में किए जाने वाले सर्वेक्षण को भी वार्षिक कर दिया जाए, जिससे निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति पर नजर रखी जा सके। चूंकि कुपोषण से संबंधित डाटा अब जिला स्तर पर तैयार किए जा रहे हैं, अतः इसके परिणाम हर निर्वाचन क्षेत्र में ऊजागर करके इसे चुनावों में एक मुद्दा बनाया जा सकता है।

कुपोषण की समस्या का निराकरण करना हमारे अपने हाथ में है। उस स्तर के प्रयास करने की जरूरत है, जैसे पहले नहीं किए गए। प्रत्येक राष्ट्र के जीवनकाल में ऐसे क्षण आते हैं, जिनको भुनाकर वह एक लंबी छलांग लगा सकता है। भारत के लिए यही वह सुअवसर है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित नीरजा चैधरी के लेख पर आधारित। 20 सितम्बर, 2018

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