भारत में कुपोषण की लगातार बिगड़ती स्थिति

Afeias
18 Dec 2020
A+ A-

Date:18-12-20

To Download Click Here.

भारत में कुपोषण की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। हाल ही में किए गए संयुक्त राष्ट्र संगठन के ‘स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एण्ड न्यूट्रीशन इन द वल्र्ड 2020’ और 2020 की हंगर रिपोर्ट जैसे दो सर्वेक्षणों में भारत में कुपोषण की स्थिति को चिंताजनक बताया गया है। ये सर्वेक्षण दो वैश्विक पैमानों पर आधारित रहे हैं। इनमें पहला, प्रिवलेन्स ऑफ अंडरनरिशमेन्ट (पी ओ यू) है, और दूसरा प्रिवलेन्स ऑफ मॉडरेट ऑर सिवियर फूड इनसिक्योरिटी (पी एम एस एफ आई) है। ये दोनों ही मानक बताते हैं कि दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में भारत में कद छोटा रहने और अपेक्षा से कम क्षमता होने के मामले सबसे अधिक हैं।

इन दो वैश्विक मानकों में पी ओ यू का संबंध उन लोगों का प्रतिशत मापने से है, जो आवश्यक आहार ऊर्जा की आवश्यकता के मुकाबले अपर्याप्त मात्रा में कैलोरी का सेवन कर रहे हैं, जबकि पी एम एस एफ आई उन लोगों की पहचान करता है, जो गंभीर या मामूली रूप से खाद्य असुरक्षा से पीड़ित हैं।

कुछ तथ्य –

  • 2011-12 के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत में गरीबी लगातार कम हुई है। उस तुलना में कुपोषण कम नहीं हुआ है। जबकि चीन, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में क्रमशः यह कम होता गया है। चीन के अलावा बाकी के देशों का भी पीओयू लगभग समान है।

पड़ोसी देशों में अफगानिस्तान का पी ओ यू एक समय पर भारत से बहुत ज्यादा हुआ करता था, जो अब तेजी से कम हुआ है। जबकि भारत की तुलना में अफगानिस्तान में गरीबी बहुत ज्यादा है।

  • 2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के माध्यम से प्रत्येक नागरिक को गुणवत्ता युक्त पर्याप्त भोजन किफायती कीमत पर उपलब्ध कराने की बात कही गई है। परंतु दो बिंदुओं पर यह लगतातार मात खाता जा रहा है।

     1)  दाल, बाजरा एवं रागी जैसे पोषक अनाजों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल न करना।

     2)  बहुत से जरूरतमंदों को योजना का लाभ न मिल पाना।

  • हाल ही में ‘हंगर वॉच’ के नाम से शुरू किए गए एक अभियान से पता चलता है कि योजना के लाभार्थी न तो भोजन ढंग से पा रहे हैं, और जो प्राप्त कर रहे हैं, उसकी गुणवत्ता बहुत खराब है।

यद्यपि कोविड की स्थिति के चलते राज्यों ने अपनी खाद्य योजना का दायरा बढ़ा दिया है। परंतु आने वाले सालों में आर्थिक गिरावट और बेरोजगारी के चलते स्थिति और भी खराब हो सकती है।

भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा नीति में तत्काल परिवर्तन करने की आवश्यकता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सार्वभौमीकरण को शामिल किया जाना चाहिए, जो स्थायी प्रकृति का हो। साथ ही गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों का वितरण किया जाए। सामुदायिक रसोई जैसे कुछ नए प्रावधानों पर काम किया जाए।

मौजूदा कार्यक्रमों के सही उपयोग और विस्तार को सुनिश्चित करना ही समय की  आवश्यकता है। उम्मीद की जा सकती है कि इससे हम देश में कुपोषण के कुछ भाग को कम कर सकेंगे।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित अमत्र्य पॉल और उपासक दास के लेख पर आधारित। 28 नवम्बर, 2020

Subscribe Our Newsletter