
बैंकिंग की बिगड़ती स्थिति में आरबीआई का निर्णय
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- औद्योगिक घरानों को बैंकों का स्वामित्व देने से निहित हितों के टकराव के बढ़ने की आशंका रहेगी।
- इस तथ्य के मद्देनजर बैंकों के स्वरूप और उद्देश्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए। बैंक एक मध्यस्थ होते हैं, जो सार्वजनिक जमा को उधारकर्ताओं तक पहुंचाते हैं। इस कड़ी में रक्षा की दो पंक्तियां काम करती हैं। पहली पंक्ति में बैंक का बोर्ड है, जो आंतरिक रक्षा करता है। दूसरी में आरबीआई है, जो बाहर से रक्षा करता है। यह अपनी भूमिका में असंतोषजनक रहा है। ऐसे में औद्योगिक घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में लाने का खतरा नहीं उठाया जाना चाहिए।
- बैंकिंग नीति में फिलहाल हुए कुछ खराब निर्णयों के चलते बैड लोन की समस्या उत्पन्न हुई है। इससे क्रेडि-जीडीपी अनुपात 55.45% तक बढ़ गया है।
- भारतीय बैंकिंग के ऊपरी पदों में कौशल की कमी और गलत प्रोत्साहन से बैंकों की स्थिति पहले ही खराब है।
बैंकिंग में अगर बदलाव ही लाना है, तो औद्योगिक घरानों को अनुमति देने के बजाय, टेक कंपनियों के द्वारा रूपांतरण की सोची जानी चाहिए। पारंपरिक बैंकिंग में होने वाले भुगतान को फिनटैक ने पूरी तरह बदल दिया है। अब वित्तीय मध्यस्थता के क्षेत्र में बिग टेक आगे बढ़ रहा है। डिजीटल अर्थव्यवस्था में डेटा ही केंद्र में रहता है। इसने बिग टेक का मार्ग आसान कर दिया है। इससे डेटा नेटवर्क एक्टीविटी फीडबैक लूप या डीएनए का लाभ मिल सकता है। अतः भारतीय बैंकिंग क्षेत्र को इस माध्यम से आगे ले जाने की आवश्यकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 29 नवम्बर, 2021