देश की गरीबी से जुड़े कुछ तथ्य
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- देश की 30% लोकसभा सीटों की मेजबानी करने वाले चार राज्य – बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश सबसे गरीब राज्यों में हैं।
- 1991 में, आर्थिक सुधारों से ठीक पहले, बिहार और तमिलनाडु की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद दर लगभग समान थी। 30 वर्षों के बाद, तमिलनाडु ने अपनी बहुआयामी गरीबी को 4.9% पर समेट दिया है, जबकि बिहार में यह 51.9%, झारखंड में 42%, उत्तर प्रदेश में 38, और मध्यप्रदेश में 37, पर है।
- यदि मौद्रिक संदर्भ में देखें, तो स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन-स्तर के संकेतकों; जैसे-पोषण, स्कूली शिक्षा के वर्षों, खाना पकाने के ईंधन, बिजली, पक्के आवास, स्वच्छता, घरेलू सम्पत्तियाँ जैसी सुविधाओं पर निर्मित बहुआयामी गरीबी सूचकांक को गरीबी के आधार को निर्धारित करने की पूर्ववर्ती पद्धति से बेहतर माना जा रहा है।
- क्रूर विडंबना यह है कि ये सभी राज्य देश की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। फिर भी यहाँ के नेता, पहचान की राजनीति को छोड़कर इन राज्यों के आर्थिक विकास की ओर उन्मुख दिखाई नहीं देते।
- इस बीच कृषि कानूनों को रद्द करने से गरीबी उन्मूलन और भी कठिन दिखाई पड़ रहा है। देश के 12.5 करोड़ किसानों में से 5 करोड़ किसान इन राज्यों के हैं। परंतु राज्य सरकारें इन किसानों के नेतृत्व में कृषि सुधारों के आहृान को सफल नहीं कर पाईं। यह राजनीतिक नेतृत्व की बड़ी चूक है।
बहरहाल, कई कल्याणकारी राज्य का दर्जा पाने वाले क्षेत्रों को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे – 5 के अनुसार देश की 60% महिलाएं, युवा तथा बच्चे अभी भी कुपोषण का शिकार हैं। इस दृष्टि से अभी भी राज्यों को आर्थिक प्रगति पर अधिक ध्यान देते हुए अधिक-से-अधिक रोजगार के अवसरों के सृजन पर ध्यान देना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 29 नवम्बर, 2021
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