भारत में जल से जुड़े कुछ तथ्य

Afeias
29 Jul 2019
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Date:29-07-19

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  • विश्व की 17 प्रतिशत जनसंख्या भारत में निवास करती है, लेकिन ताजे जल की उपलब्धता केवल 4 प्रतिशत ही है।
  • भारत के 75 प्रतिशत लोगों को पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो पाता। 90 प्रतिशत ग्रामीण घरों में पानी की पाइप लाइन नहीं है।
  • भू-जल निष्कर्षण के मामले में हमारा देश, विश्व में सबसे आगे है। विश्व के कुल भू-जल उपभोग का 25 प्रतिशत उपभोग अकेले भारत कर रहा है।
  • विश्व में पानी कमी से जूझ रहे विश्व के 20 शहरों में से पाँच तो भारत में ही हैं। इस सूची में दिल्ली दूसरे स्थान पर है।
  • जल की कमी से जूझ रहे राज्यों में किसान अभी भी प्रति हेक्टेयर सबसे ज्यादा जल की मांग रखने वाली चावल और गन्ने जैसी फसल उगा रहे हैं। पंजाब में एक किलो चावल उगाने के लिए बिहार की तुलना में तिगुना और बंगाल की तुलना में दोगुना पानी इस्तेमाल किया जाता है। पंजाब के 80 प्रतिशत धान की खेती के लिए भूजल का उपयोग होता है। इसका अर्थ है कि भारत से बासमती चावल के निर्यात के रूप में हम 10 खरब लीटर से ज्यादा का पानी निर्यात कर रहे हैं।
  • वर्तमान सरकार ने 2024 तक भारत के प्रत्येक घर में पानी की पाइप लाइन पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए जल शक्ति मंत्रालय का गठन भी किया गया है। इस मंत्रालय के माध्यम से पानी की कमी से जूझ रहे 255 जिलों में जल संरक्षण का काम शुरू किया जा रहा है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि जल ही जीवन है। यह वह शक्ति है, जो भारत के उच्च आर्थिक विकास, पर्यावरणीय स्थिरता और नागरिकों के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

जल संरक्षण के उपाय

  • सबसे पहले तो हमें स्थानीय जल स्रोतों को पुनःस्थापित, संरक्षित एवं सवंर्धित करने की जरूरत है। देश की प्रत्येक पंचायत के पास नदी, नालों, तालाबों, झीलों के रूप में जल स्रोत विद्यमान हैं। इस मामले में तेलंगाना के काकतेय मिशन से सीखा जाना चाहिए। इसके अंतर्गत 4,600 तालाबों को बहाल किया गया। दक्षिण भारतीय राज्यों में घन फाऊंडेशन ने भी अनेक तालाबों की मरम्मत आदि करके पानी के संरक्षण के लिए उन्हें तैयार किया है। अन्य राज्यों में भी ऐसा किया जाना चाहिए।
  • आधुनिकतम तकनीक, रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना तंत्र के माध्यम से जल पर रियल टाइम डाटा मिल सकता है, और इससे क्षेत्रवासियों को जल संरक्षण के लिए एक नियोजित कार्यक्रम दिया जा सकता है। भू-जल का भी नियमित निरीक्षण करके उसके स्तर को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। आंध्रप्रदेश ऐसा ही कर रहा है।

कृषि के लिए इस्तेमाल होने वाले पॉवर फीडर्स को अलग रखे जाने से भू-जल निष्कर्षण का हिसाब रखा जा सकता है। गुजरात ने पूर्ण रूप से इस पद्धति को अपना कर बिजली और पानी की बचत की है।

  • जल का सामुदायिक प्रबंधन, और जल उपभोक्ताओं के संगठन बनाकर सफलता पाई जा सकती है। महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव में इस प्रकार का प्रबंधन किया गया है। वहाँ पानी की राशनिंग के साथ गहरे बोर करने पर पाबंदी है। वहाँ कपास और गन्ने जैसी ज्यादा पानी लेने वाली फसल उगानी भी बंद कर दी गई है। इस गाँव का उदाहरण लेकर राज्य सरकार ने 5,000 गाँवों में जल की बजटिंग शुरू कर दी है।
  • हमारे कृषक चीन,इजरायल और अमेरिकी किसानों की तुलना में 3 से 5 गुणा अधिक पानी की खपत करते हैं। किसानों को जलवायु आधारित कृषि पैटर्न अपनाकर फसल का चुनाव करना होगा। कृषकों को इसका ज्ञान देने के साथ ही अधिक जल की मांग रखने वाली फसलों पर सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य में कटौती करनी होगी। ज्वार, बाजरा, रागी के साथ-साथ दालों की उपज उच्च पोषण देती है, और पानी की मांग कम करती हैं। अतः इनके उत्पादन पर जोर दिया जाना चाहिए।
  • भारत में कृषि के साथ-साथ भूजल पर भी कानूनी अधिकार माना जाता है। भू-मालिक द्वारा किए जाने वाले भू-जल निष्कर्षण पर कोई रोक नहीं है। महाराष्ट्र ने इस कानून में बदलाव करके भू-जल का संरक्षण प्रारंभ कर दिया है। नए कुंओं की खुदाई के लिए भी अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है।
  • पानी की नियमित आपूर्ति को बिल आधारित बना दिया जाना चाहिए। इसके लिए राजनैतिक और प्रशासक दल कोई उत्साह नहीं दिखा रहे हैं। पानी के बिल से होने वाली आय का उपयोग जल-प्रबंधन के बुनियादी ढांचे में किया जाना चाहिए।
  • सिंगापुर एक ऐसा देश है, जिसने अपशिष्ट जल की रिसायक्लिंग करके, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, दोहरी पाइप लाइन, अलवणीकरण, जल-कानून, पानी पर डॉयनामिक प्राइसिंग, सार्वजनिक शिक्षा, शोध एवं अनुसंधान के द्वारा जल के लिए मलेशिया पर अपनी निर्भरता कम कर ली है। भारत को इससे शिक्षा लेनी चाहिए।

जल संरक्षण हतु जमीनी स्तर पर अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। जलयुक्त शिवर योजना से लगभग 11,000 गाँवों को सूखा मुक्त कर दिया गया है। इसके अंतर्गत जबलपुर, ग्वालियर और इन्दौर में वाटर हार्वेस्टिंग वाले घरों में निगम ने सम्पत्ति कर में छूट दी है। इससे भूजल स्तर 2 मीटर तक बढ़ गया है। तेलंगाना में लगभग 17,000 छोटे तालाबों का पुनरुद्धार किया गया है। इसमें एकत्रित वर्षा-जल से 19 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई हो रही है।

नीति आयोग ने जल-प्रबंधन के आधार पर राज्यों को स्थान देने के लिए 28 मानदण्डों पर आधारित एक सूचकांक तैयार किया है।

हमें जल रक्षित भारत की आवश्यकता है। जल का उचित प्रबंधन करने की हमारी क्षमता ही हमारे विकास और समृद्धि का आधार बन सकती है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 4 जुलाई,2019

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