स्व-रोजगार जैसे व्यावहारिक विकल्प पर ध्यान दे सरकार

Afeias
30 Jul 2019
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Date:30-07-19

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भारत में आधे से अधिक कार्यबल स्व-रोजगार में संलग्न है। यह किसी उद्यमितापूर्ण राष्ट्र का सूचक नहीं है, वरन् यह इस तथ्य की ओर संकेत करता है कि हमारे देश का निर्धन व्यक्ति बेरोजगार रहकर जीवन-निर्वाह नहीं कर सकता। इसलिए उसने कोई न कोई अपना छोटा-मोटा काम करना शुरू कर दिया है। 1990 के आर्थिक सुधारों के बाद जन्मे भारतीय नागरिक अपना शोषण नहीं करवाना चाहते। उन्हें या तो औपचारिक क्षेत्र में रोजगार चाहिए या वे स्वयं के लिए कोई काम ढूंढ लेना बेहतर समझते हैं।

स्व-रोजगार के उभरते नए बाजार को तीन ढांचागत परिवर्तनों से सुविधा और लाभ मिल रहा है। –

  1. तकनीक
  2. कौशल, तथा
  3. औपचारिक मंच का मिलना।

ये तीनों ढांचागत परिर्वतन ऐसे हैं, जो अपने अधीन रोजगार चलाने वालों को औपचारिक सर्टिफिकेट कार्यक्रमों, बैंक खाते खोलने, ऋण और बीमा कराने की सुविधा देने के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से जोड़ रहे हैं।

इस मामले में सबसे बड़ी चुनौती नौकरशाही द्वारा थोपे गए नियमन की है, या इन तीनों मंचों से जुड़े उद्योगों पर स्व-उद्यमियों की निर्भरता की है।

कुछ ठोस कदम उठाकर सरकार स्व-उद्यमियों के रोजगारों को सुरक्षित और टिकाऊ बना सकती है। तभी वे देश के विकास में सही भागीदार बन सकेंगे।

  • सर्वप्रथम, इस प्रकार के रोजगार को परंपरागत फैक्टरी मॉडल के रोजगार से अलग समझने की जरूरत है। छोटे स्व-उद्यमी और फ्रीलांस अनुबंध पर काम करने वाले, अस्थायी कर्मचारी की तरह है। अतः सरकार को इनके सुरक्षा कवर को बढ़ाने की जरूरत है। राष्ट्रीय पेंशन योजना, कर्मचारी बीमा निधि, प्रॉविडेंट फंड एवं स्वास्थ्य बीमा जैसी योजनाओं के दायरे में स्व-उद्यमियों को भी लाया जाना चाहिए।
  • आयकर कानून की धारा 79 के अंतर्गत आने वाले सेफ हार्बर दिशानिर्देशों (ये सोशल मीडिया वेबसाइट और वस्तु बाजार से जुड़े हुए हैं) को कैब एग्रीगेटर्स, फूड डिलीवरी प्लेटफार्म, और होम सर्विसेज एग्रीगेटर्सतक विस्तृत किया जाना चाहिए।
  • कौशल विकास पर सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है। इनमें प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, प्रधानमंत्री कौशल केन्द्र के साथ नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन और इंस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट जैसे संगठनों को ऑनलाइन प्लेटफार्म के साथ जुड़कर ऐसे काम करना चाहिए कि वे प्रशिक्षण को आधुनिक रोजगार ट्रेंड के अनुकूल बनाकर अच्छे अवसर उपलब्ध करा सकें।
  • एग्रीगेटर्स को एक राष्ट्रीय लाइसेंस और यूनिवर्सल एंटरप्राइस नंबर प्रदान किया जाए, जिससे उन्हें प्रत्येक राज्य या शहर में अलग-अलग प्रयास न करने पड़ें।
  • वेतन वाले रोजगार से जुड़े टैक्स फॉर्म 16 की तरह ही स्वरोजगार से जुड़े प्रावधान के सृजन की आवश्यकता है।

पिछले पाँच वर्षों में नीतियों ने वेतन आधारित रोजगार बढ़ाए हैं, परन्तु 2024 तक 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था तक पहुँचने के लिए स्वरोजगार नियमन नीति की तत्काल आवश्यकता है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में मनीष सबरवाल एवं अभिराज सिंह भाल के लेख पर आधारित। 2 जुलाई, 2019

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