रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे

Afeias
22 Oct 2018
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Date:22-10-18

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भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, रोजगार के अवसर पैदा करने में मात खा रही है। बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। आर्गेनाईजेशन ऑफ इकॉनॉमिक कार्पोरेशन एण्ड डवलपमेंट के भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि 2017 में भारत के 15 से 29 आयु वर्ग के 30 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। मार्च 2018 में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनॉमी के द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार फरवरी 2018 तक 3.1 करोड़ युवा बेरोजगार थे। एक अनुमान के अनुसार 2018 में रोजगार के मात्र 6 लाख अवसर ही उपलब्ध हो सके हैं।

भारत के आर्थिक विकास के लिए बेरोजगारी की यह स्थिति खतरनाक है। दूसरी ओर, रोजगार के नए अवसरों के निर्माण को भारत में चल रही विकास चुनौतियों का सामना करने की दिशा में रामबाण माना जा रहा है।

बेरोजगारी का समाधान ढूंढकर देश की तीन बड़ी मुख्य समस्याओं- सामाजिक अशांति और अपराध, गरीबी और भूख; तथा स्वास्थ्य और जन-कल्याण से निपटा जा सकता है। ये तीनों ही कारण ऐसे हैं, जो हमारे जीवन की गुणवत्ता के लिए उत्तरदायी होते हैं। साथ ही राष्ट्र की स्थिरता के लिए भी ये आवश्यक हैं।

सामाजिक अशांति

पिंकप्टन और फिक्की की भारतीय रिस्क सर्वे से जुड़ी छठी रिपोर्ट में ‘हड़ताल, बंद एवं अशांति’ को अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने के लिए सबसे ज्यादा दोषी माना गया है। स्वाभाविक रूप से देश का व्यवसाय इससे प्रभावित होता है। रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न करना ही इस समस्या का समाधान हो सकता है। इसके माध्यम से लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, उनमें आत्म-सम्मान की भावना बढ़ती है, और आपसी विश्वास भी बढ़ता है। सबसे अहम् बात यह है कि रोजगार प्राप्त व्यक्ति देश के एक उत्तरदायी नागरिक के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इससे देश में स्थिरता बढ़ती है।

भूख और गरीबी

इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैश्विक भूख सूचकांक के 119 देशों में भारत को 100वें स्थान पर रखा गया है। इसका सीधा संबंद बेरोजगारी से है। 2015 में भारत के 17 करोड़ या लगभग 12.4 प्रतिशत जनसंख्या के गरीबी में रहने (यानी 123 रुपये प्रतिदिन के खर्च पर) की बात कही गई थी। ऐसे लोग दुसरों की दया पर ही जीवित हैं। सामाजिक सुरक्षा के अभाव में रोजगार ही एकमात्र सहारा हो सकता है। अगर रोजगार के नए अवसर नहीं उत्पन्न होते हैं, तो आर्थिक विकास के साथ आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ेगी।

स्वास्थ्य एवं जन-कल्याण

बेरोजगारी, गरीबी और स्वास्थ्य आपस में जुड़े हुए हैं। गरीबी और खराब स्वास्थ्य बेरोजगारी का कारण बनते हैं। दूसरी ओर, लंबे समय से चली आ रही बेरोजगारी, कौशल में कमी और व्यावसायिक संबंधों में कमी लाती है। साथ ही किसी काम को करने लायक न होने का एक ठप्पा सा लगा दिया जाता है, जो अवसाद को जन्म देता है। इसके कारण परिवार के स्वास्थ्य का खर्च वहन करना मुश्किल होता जाता है। बेरोजगारी-गरीबी-स्वास्थ्य के दुष्चक्र में फंसे लोगों के लिए कुछ सृजनात्मक कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए, जिससे उनकी सोच में सकारात्मकता आए। वे अपने को बेकार न समझें, और किसी न किसी प्रकार से आय के साधन जुटाकर देश के सकल घरेलू उत्पाद में अपना सार्थक योगदान दें।

रोजगार के अवसर उत्पन्न होने से एक परिवार शिक्षा पर खर्च करने के लिए क्षमतावान हो जाता है। विश्व बैंक के अनुसार शिक्षा का हर एक वर्ष, आय के 10 प्रतिशत बढ़ने में योगदान देता है।

नीति-निर्माताओं को यह समझने की आवश्यकता है कि रोजगार उत्पन्न करने के लिए नई सोच को अपनाना होगा। अनौपचारिक क्षेत्र में सफल उद्यमियों का एक नया वर्ग तेजी से ऊभर रहा है। अतः प्रगति, रोजगार और शिक्षा की एक जटिल तिकड़ी की विवेचना की आवश्यकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अतुल राजा के लेख पर आधारित। 28 अगस्त, 2018

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