रोजगार के बेहतर अवसर तलाशे जाएं

Afeias
05 Nov 2018
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Date:05-11-18

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देश में युवा वर्ग के लिए निरंतर रोजगार उत्पन्न करने की बात कही जा रही है। अगर यह मान भी लिया जाये कि रोजगार उत्पन्न करने के निरंतर नवीन प्रयास किये जा रहे हैं, तो फिर क्या कारण है कि रेलवे की ग्रुप डी की परीक्षा के लिए पी एच डी कर चुके उम्मीद्वारों की बड़ी संख्या है? क्या कारण है कि राजस्थान में चपरासी के पाँच पदों के लिए 23,000 आवेदन आए हैं?

सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में इतनी बड़ी संख्या में आवेदन दिए जाने के कुछ कारण हैं, जो हमारे निरंतर पनपते रोजगारों की प्रकृति को भी ऊजागर करते हैं।

  • बड़े पैमाने पर निजीकरण किए जाने के बाद भी, सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में मिलने वाली सुरक्षा और लाभ, युवाओं के लिए आकर्षण का विषय है। इन नौकरियों में सेवानिवृत्ति के बाद की पेंशन को एक बड़ी जीवन-सुरक्षा के रूप में देखा जाता है। सरकारी नौकरी में निचली श्रेणी के सामान्य सहायक को भी जो वेतन दिया जाता है, वह निजी क्षेत्र की तुलना में दुगुना है।
  • प्रतिमाह बढ़ने वाली बेरोजगारों की संख्या की तुलना में रोजगार के नए अवसर बहुत ही कम आ पाते हैं। सातवां त्रैमासिक रोजगार सर्वेक्षण बताता है कि 1.36 लाख रोजगार के नए अवसर उत्पन्न किए गए, जबकि बेरोजगारों की संख्या में हर महीने दस लाख से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हो जाती है।
  • देश का 80 प्रतिशत कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में लगा हुआ है। इनमें से केवल 17 प्रतिशत को नियमित वेतन दिया जाता है। पांचवा वार्षिक रोजगार-बेरोजगार सर्वेक्षण स्पष्ट करता है कि कार्यबल में कर्मचारियों की संख्या में से 21 प्रतिशत को ही सामाजिक सुरक्षा जैसी सुविधाएं मिल रही हैं।
  • निर्यात में लगातार गिरावट तथा ऑटोमेशन के चलते रोजगारों पर तलवार लटकी है। फलस्वरूप तकनीक की दिशा बदलकर नए आकाश तलाशने की जरूरत है। भारत के पास रोजगार के कई ऐसे विकल्प है। जिन्हें पुर्नजीवित किया जा सकता है।

निदान

  • भारत का कपड़ा उद्योग असीम संभावनाएं रखता है। आर सी ई पी के सोलह देशों के साथ मिलकर अगर 3.5 अरब की जनसंख्या के लिए कपड़े तैयार किये जाते हैं, तो यह कभी न समाप्त होने वाले रोजगार के अवसर के रूप में विकल्प बन सकता है। यह उद्योग श्रम पर आधारित है। इसी प्रकार से चमड़ा और जूता उद्योग में भी रोजगार के अवसर बढ़ाए जा सकते हैं।
  • रोजगार की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ कौशल विकास में भी निवेश की उतनी ही आवश्यकता होगी।
  • भारत को एक राष्ट्रीय रोजगार नीति बनाने की आवश्यकता है, जो सामाजिक, आर्थिक समस्याओं को संज्ञान में लेते हुए रोजगारों के निर्माण के अवसर ढूंढ सके। जो कानूनों में सुधार कर सके और रोजगार उपलब्ध कराने वाले उद्योगों को कर में राहत दे सके।
  • हमें अपने रोजगार कार्यालयों को रोजगार केन्द्र के रूप में परिवर्तित करने की आवश्यकता है। ये केन्द्र सरकारी या निजी तौर पर चलाए जाने चाहिए। ये केन्द्र युवाओं के लिए भर्ती प्रक्रिया से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने में मदद करे।
  • राष्ट्रीय कौशल विकास निगम को चाहिए कि वह युवा विकास सहयोग कार्यक्रम चलाए, जो युवाओं को कौशन विकास के अवसर प्रदान करने वाले गैर सरकारी संगठनों की मदद करे। इसमें जिला स्तर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
  • उद्यमिता को सामाजिक प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता है। लघु एवं मध्यम दर्जे के व्यवसाय की शुरुआत करने में आने वाली अड़चनों को दूर किया जाना चाहिए। इनके लिए उपलब्ध सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। बुनियादी ढांचों का विकास भी आवश्यक है। भारतीय बैंक लघु एवं मझोले उद्यमों की पूरी मदद देने का प्रयत्न करें।

युवावस्था, विकास की अवस्था है। भारत के युवाओं को प्रोत्साहन भरा वातावरण प्रदान करना देश के हित में है, और हमारा उत्तरदायित्व भी है। उनके लिए बेरोजगारी एक अभिशाप है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित वरुण गांधी के लेख पर आधारित। 25 सितम्बर, 2018

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