अफ्रीका-भारत संबंधों में कसावट की जरूरत

Afeias
31 Jul 2019
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Date:31-07-19

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मोदी सरकार ने यूपीए कार्यकल की अनेक नीतियों में फेर बदल किया है। आसियान देशों से जुड़े मामले में भी ऐसा ही कुछ किया गया है। दक्षिण-पूर्वी एशिया के दस देशों का यह संगठन आज तक एशिया-प्रशांत महासागर क्षेत्र पर केन्द्रित था। संगठन के प्रमुख सदस्य इंडोनेशिया की पहल पर यह अपना क्षेत्र हिन्द-प्रशांत महासागर पर स्थानांतरित करने के लिए तैयार हो गया है। दरअसल, हिन्द और प्रशांत महासागरों के बीच इंडोनेशिया एक कड़ी की तरह काम करता है। इन दोनों महासागरों के बीच का अधिकांश समुद्री यातायात इंडोनेशियाई द्वीप समूह के एक संकरे जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है।

इस बदलाव में दिल्ली और जकार्ता को हिन्द महासागर क्षेत्र की सुरक्षा और समृद्धि की दृष्टि से अफ्रीका के महत्व को याद रखना चाहिए। इससे जुड़े अन्य कारण भी हैं।

  • 1955 का बान्डुंग सम्मेलन केवल गुट-निरपेक्षता पर नहीं था, बल्कि इसमें एशिया-अफ्रीका की एकजुटता को भी बहुत महत्व दिया गया था। भारत और इंडोनेशिया को यह याद रखना चाहिए कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अफ्रीका के एक लाख सैनिकों ने वर्मा और दक्षिण-पूर्वी एशिया को जापान से मुक्त कराने में अहम् भूमिका निभाई थी।
  • वर्तमान परिप्रेक्ष्य में केवल यूरोप और अमेरिका के अफ्रीका पर प्रभाव की चर्चा इतिहास की बात हो चुकी है। अब चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया और आसियान देश भी अफ्रीका के विकास कार्यों में प्रमुख निवेशकों की तरह अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के साथ काम कर रहे हैं।
  • चीन और जापान तो अफ्रीका के बुनियादी ढांचों के आधुनिकीकरण और विस्तार कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। हिन्द-प्रशांत जैसी शब्दावली से सबसे ज्यादा बिदकने वाला चीन ही इस पूरे क्षेत्र को समुद्री सिल्क पथ के माध्यम से जोड़ने की कोशिश कर रहा है। वाशिंगटन आधारित सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एण्ड इंटरनेशनल स्टडीज के अनुसार अफ्रीका के सब-सहारा क्षेत्र में 47 बंदरगाहों के विकास में चीन लगा हुआ है। 2013-17 तक इस क्षेत्र में प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में चीन की भूमिका रही है।

चीन के साथ-साथ जापान ने भी अफ्रीका के जिबूती में 2011 से सैन्य-बेस बना लिया है। दक्षिण कोरिया ने भी अफ्रीका के लिए शांति स्थापना एवं अन्य सैन्य मिशन हेतु यूएई में अपने 150 ट्रूप को स्थापित कर रखा है।

  • अफ्रीका में सैन्य बेस की स्थापना में फ्रांस और ब्रिटेन भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने इसे हिन्द-प्रशांत की सीमा तक विस्तृत कर रखा है।
  • 9/11 के बाद से अमेरिका भी अफ्रीका के भू-राजनैतिक मामलों पर ध्यान देने लगा है।

रूस भी अफ्रीका में रुचि रखता है।

  • ईरान, यूएई, कतर, सऊदी अरब और तुर्की जैसे देश भी अफ्रीका के सुरक्षा मामलों में कुछ हद तक शामिल हैं।

अपने प्रधानमंत्रित्व काल के प्रथम चरण में प्रधानमंत्री ने बहुत से अफ्रीकी देशों के नेताओं को सम्मेलन के लिए आमंत्रित कर, अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों को नई ऊर्जा प्रदान की थी। जिस गति और पैमाने से अफ्रीका की वर्तमान स्थिति में बदलाव आ रहा है, उसे देखते हुए भारतीय प्रधानमंत्री की अफ्रीका के प्रति नीति की सक्रियता में संदेह उत्पन्न हो जाता है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित सी राजा मोहन के लेख पर आधारित। 2 जुलाई, 2019

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