भारत में वृद्धों की बढ़ती जनसंख्या की तैयारी

Afeias
01 Aug 2019
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Date:01-08-19

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वर्तमान भारत में युवा जनसंख्या ही हमारी शक्ति है। समय के साथ-साथ जनसांख्यिकी का यह लाभांश वृद्ध जनसंख्या में रूपान्तरित होता जाएगा, और इनकी देखभाल का दायित्व देश पर ही होगा। क्या हम सब इसके लिए तैयार हैं? देखें, क्या कहते हैं, आँकड़े।

  • फिलहाल देश की 8.4 प्रतिशत यानी 10.2 करोड़ जनसंख्या 60 की उम्र पार कर चुकी है। संयुक्त राष्ट्र के नेशन्स पॉपुलेशन फंड के अनुसार 2061 तक भारत में वृद्धों की यह संख्या 42.5 करोड़ हो जाएगी।
  • इन आँकड़ों का यह अर्थ नहीं है कि देश की युवा जनसंख्या कम हो रही है। 2001 से लेकर 2030 तक कामकाजी लोगों की संख्या में 39 करोड़ की बढ़ोत्तरी हो जाएगी।
  • भारतीयों की जीवनावधि बढ़ती जा रही है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि महिलाओं की उम्र ज्यादा लंबी होगी। 2011 में यह 69.4 थी, जो 2061 में बढ़कर 79.7 हो जाएगी। पुरूषों में 2011 में औसत जीवनावधि 66.0 थी, जो 2061 में 76.1 हो जाएगी।
  • प्रति महिला बच्चों की संख्या घटती जा रही है। यह 1994 के 3.6 से घटकर 2015-16 में 2.2 रह गई है। हम 2.1 की प्रतिस्थापन प्रजनन दर पर पहुँचने के बहुत करीब हैं। इस पर पहुँचने का अर्थ होगा कि परिवारों में महिलाओं को परिवार नियोजन के तरीके चुनने और निर्णय लेने की छूट है। इसका यह भी अर्थ होता है कि महिला को अपने देह से जुड़े अधिकार दिए जा रहे हैं। वह बच्चों के जन्म और संख्या को लेकर स्वतंत्रता से विचार कर सकती है। वह जब तक चाहे, शिक्षा प्राप्त कर सकती है। श्रम क्षेत्र, राजनैतिक जीवन या समुदाय में योगदान दे सकती है। इसका सीधा-सा अर्थ है कि हमारी सामाजिक संरचना रूपांतरण की ओर प्रवृत्त है।
  • रूपान्तरण के इस दौर का सबसे पहला प्रभाव बुजुर्गों पर पड़ने वाला है। युवा पीढ़ी तो उत्पादक और आकर्षक व्यवसाय तथा नौकरी के चलते एक से दूसरी जगह को स्थानांनरित हो जाती है। ऐसे में घर के बुजुर्गों की देखभाल के लिए कोई नहीं रह जाता। अध्ययनों से पता चलता है कि बुजुर्गों में गरीबी का प्रतिशत अधिक है। इसके और बढ़ने की संभावना है। अधिक एकल परिवारों के कारण भी बुजुर्ग अकेले पड़ गए हैं।
  • भारत अभी जापान जैसे देशों की तरह जनसांख्यिकीय रूपांतरण के लिए तैयार नहीं है। जापान ने अपने वृद्ध नागरिकों के लिए एक व्यापक हैल्थ पैकेज उपलब्ध करवा रखा है। बढ़ती उम्र पर होने वाली विश्व बैठक में इस प्रकार की जरूरतों की ओर संकेत किया गया था। भारत में भी अनेक तरीके ढूंढे जा रहे हैं। केरल के कुछ गांवों में 10 प्रतिशत निधि को बुजुर्गों की मदद के लिए अलग रखा जाता है।
  • भारत के अलग-अलग राज्यों में वृद्धों की संख्या अलग-अलग समय पर बढ़ेगी। अतः नीतियों और योजनाओं का आकार और समय एक सा नहीं रखा जा सकता। फिर भी कुछ सामान्य तरीकों को अपनाया जा सकता है।

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    .सेवाओं के एक न्यूनतम पैकेज को शुरू किया जाए। यह राष्ट्रीय स्तर पर हो।

    2.देश का अधिकांश कार्यबल पेंशन प्राप्त नहीं करता है। ऐसे बुजुर्ग अपने बच्चों या सम्पत्ति पर ही निर्भर रहते हैं। सेवानिवृत्ति पेंशन योजना का विस्तार किया जाना चाहिए।

    3.सामाजिक सहायता के लिए कुछ नवोन्मेषी और गतिशील मॉडल तैयार किए जाने चाहिए। बुजुर्गों की देखभाल और सामाजिक सुरक्षा के लिए सुनियोजित और संस्थागत ढांचा खड़ा किया जाए, जो निकट भविष्य में ही काम करना प्रारंभ कर दे।

    4.वृद्धों और युवाओं के बीच सामाजिक जुड़ाव के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। इससे वृद्धों के अनुभव का लाभ युवाओं को मिल सकेगा, और युवाओं के नवोन्मेषी मस्तिष्क से बुजुर्ग भी स्मार्टफोन व तकनीक का इस्तेमाल सीख सकते हैं।

इन सब प्रयासों की तत्काल आवश्यकता है। अन्यथा हमारे वृद्धजन अकेलेपन, गिरते हुए स्वास्थ्य और उपेक्षा का शिकार होते रहेंगे। भारतीय समाज इन्हें अपनी सामूहिक चेतना से ऐसे ही ओझल नहीं होने दे सकता।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अर्जेंटिना भेत्वेल के लेख पर आधारित। 11 जुलाई, 2019

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