भारत की जनसंख्या दर की वर्तमान प्रवृत्ति

Afeias
15 Jun 2016
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15-June-16Date: 15-06-16

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भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या जहाँ एक ओर चिंता का एक बड़ा कारण है,

वहीं अब इसके कुछ स्पष्ट लाभ भी दिखाई देने लगे हैं। इसे ही जनसांख्यिकीय लाभांश (पापुलेशन डिविडेन्ट) के नाम से जाना जाता है।

जनसांख्यिकीय लाभांश में सामान्य रूप में 20 से 30 साल की आयु की आबादी के लोगों का समूह होता है। यह समूह सबसे अधिक कार्यशील माना जाता है।

भारत अब इस जनसांख्यिकीय लाभांश के चरण में प्रवेश कर चुका है, जिसके लगभग सन् 2045 तक जारी रहने की आशा है। तब तक भारत जनसंख्या-वृद्धि की स्थिर दर को प्राप्त कर लेगा। चीन वर्तमान में इस दौर में है।

लेकिन मई 2016 में जारी सर्वेक्षण के आँकड़े बताते हैं कि भारत ने जनसंख्या-वृद्धि की यह दर लगभग-लगभग प्राप्त कर ली है। जब जनसंख्या वृद्धि की दर 2.1 प्रति हजार पर आ जाती है, तब किसी भी देश की जनसंख्या उसी आँकड़े पर स्थिर हो जाती है। नवीनतम जारी आँकड़ों के अनुसार भारत की सन् 2013 में प्रजनन दर 2.3 रही है। अधिकांश विकसित देशों में यह प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) 2.1 है।

TFR के बारे में जारी निम्न तथ्य ध्यान देने योग्य हैं-

  • भारत की 2.3 की यह TFR तब है, जबकि यहाँ बाल मृत्यु दर काफी अधिक है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमने स्थिर TFR दर पहले ही प्राप्त कर ली है।
  • भारत के ग्रामीण क्षेत्र की TFR 2.5 है, जबकि शहरी क्षेत्रों की 1.8, जो ब्रिटेन एवं अमेरीका की दर से थोड़ी ही कम है। चूंकि भारत का शहरीकरण तेजी से हो रहा है, इसलिए कुल TFR दर में अगले 20 वर्षों में तेजी से गिरावट आयेगी।
  • दक्षिणी भारत में तो प्रजनन दर काफी समय से कम ही रही है। लेकिन महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अब उत्तर भारत में भी यह दर तेजी से कम हो रही है।
  • उत्तरप्रदेश में यह दर 3.1 तथा बिहार में 3.5 है।
  • पश्चिम बंगाल में TFR की दर सबसे कम 1.6 है।
  • सर्वे में बताया गया है कि उच्च शिक्षित वर्ग में प्रजनन दर तेजी से गिर रही है।
  • गिरती हुई प्रजनन दर का अर्थ यह नहीं है कि भारत की जनसंख्या में वृद्धि होनी तुरंत रुक जायेगी। आगामी 25 वर्षों में कम होती हुई मृत्यु दर जनसंख्या वृद्धि को बनाये रखेगी।

प्रजनन दर की वर्तमान प्रवृत्ति का प्रभाव

  • सरकार की सामाजिक नीति का जोर अब जनसंख्या नियंत्रण की बजाय बाल मृत्यु दर पर होना चाहिए।
  • पेंशन नीति पर भी विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि भविष्य में युवा जनसंख्या में वृद्धि की तुलना में वृद्धों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होगी।
  • जनसंख्या के इस नये स्वरुप के अनुसार शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अन्य सेवाओं का निर्धारण किया जाना चाहिए।

हांलाकि जनसंख्या के स्वरुप में परिवर्तन धीरे-धीरे ही होगा, लेकिन एक स्वरुप ग्रहण कर लेने के बाद यह अत्यंत शक्तिशाली हो जाता है। इसका देश पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। चीन और जापान इसके उदाहरण हैं।

भारत के प्रजनन दर में आ रही यह गिरावट कोई अनोखी नहीं है। अर्थव्यवस्था जब किसी एक निश्चित स्तर पर पहुँचती है, तो अक्सर यह प्रवृत्ति देखने को मिलती है। अनेक यूरोपीय देशों तथा ब्राजील, चीन एवं रुस में तो यह दर स्थिर-जनसंख्या की दर से भी कम चली गई है।

हांलाकि कुछ लोग यह मानते हैं कि गिरती हुई ज्थ्त् देश के लिए अच्छी बात है। लेकिन इस तथ्य की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वृद्धों की बढ़ती हुई जनसंख्या की अपनी चुनौतियां होती हैं।

 

‘दि इकॉनामिक टाइम्स’ में संजीव सान्याल के प्रकाशित ‘‘हनी, वी आर श्रिंकिंग’’ शीर्षक से साभार।

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