भारत में पोषण से जुड़े कुछ नए तथ्य

Afeias
29 Dec 2020
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Date:29-12-20

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स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यूनिसेफ के सहयोग से तीन वर्ष पूर्व एक व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण संपन्न किया था, जिसमें पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग आधे बच्चे किसी न किसी रूप में कुपोषित पाए गए थे। इसके मद्देनजर 2018 में प्रधानमंत्री पोषण अभियान चलाया गया था, जिसने हाल ही में 1000 दिवस पूरे किए हैं। यही वह उत्तम समय है, जब हमें पोषण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दो कारणों से नवीनीकृत करने की आवश्यकता है –

      1 .इस कार्यक्रम के 1000 दिवस, एक बच्चे के जन्म से लेकर उसके दो वर्ष की आयु का होने तक, उसके पोषण पर खास महत्व रखते हैं। एक बच्चे के जीवन का यह प्रारंभिक काल पोषण की कमी से उसके पूरे जीवन को क्षति पहुँचा सकता है।

      2. कोविड-19 के चलते पोषण की सफलता की पटरी पर दौडने वाली रेल के डगमनाने की संभावना हो सकती है। इसके कई कारण हो सकते हैं –

  • कोविड-19 के कारण बहुत से लोगों की आय कम हो जाने से वे गरीबी का जीवन जीने को मजबूर हो रहे हैं। जो गरीब थे, वे और अधिक गरीबी झेल रहे हैं। यही वर्ग खाद्यान्न और पोषण की असुरक्षा में जीता है।
  • महामारी के चलते आंगनबाड़ी, मध्यान्ह भोजन, टीकाकरण, माइक्रो न्यूट्रीशन सप्लीमेन्ट आदि योजनाएं स्थगित कर दी गई हैं। इससे पोषण के स्तर को सुधारने में मिली सफलता के स्तर के नीचे चले जाने की आशंका है।

क्या किया जाना चाहिए –

  • पोषण-स्तर में मिली सफलता को बनाए रखने और उससे आगे की राह पर चलने के लिए पोषण योजनाओं की वित्तीय प्रतिबद्धता को बनाए रखना होगा।
  • महामारी का प्रभाव समाज पर कई प्रकार से पड़ रहा है। इसके चलते आर्थिक स्तर में आई कमी से बाल विवाह या छोटी उम्र में लड़कियों की शादी की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसका सीधा प्रभाव लड़कियों की शिक्षा पर पड़ेगा। एक अशिक्षित या कम शिक्षा प्राप्त अवयस्क लड़की अगर माता बनती है,तो जन्में शिशु में पोषण की अधिक कमी देखी जाती है। अतः सामाजिक स्तर पर चलने वाली कुप्रथाओं को प्राथमिकता पर रोकने की जरूरत है।
  • देश में पोषण के स्तर का रिकार्ड रखने के लिए डेटा सिस्टम पर निर्भरता बढ़ानी होगी।
  • देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों को एकजुट होकर, अपने-अपने स्तर पर सरकार के इस महायज्ञ में सहयोग देना चाहिए।

नीति, रणनीति और वैचारिक स्तर पर भारत में समन्वित बाल विकास योजना, मध्यान्ह भोजन योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी विश्व की सबसे व्यापक योजनाएं चलाई जा रही हैं, जो बाल विकास और पोषण में सहायक हो सकती हैं। इसके साथ ही हमें हर माता और शिशु की पोषण माह के अंतर्गत 12 माह, दुग्धपान के अंतर्गत 52 सप्ताह और राशन घर ले जाने के अंतर्गत 365 दिनों तक पर्याप्त देखभाल करनी होगी। तभी हमारा उद्देश्य पूर्ण हो सकता है।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित अर्जन देवगत के लेख पर आधारित। 10 दिसम्बर, 2020

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