निर्यात को कैसे बढ़ाएं

Afeias
26 Jul 2019
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Date:26-07-19

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भारत के लिए निर्यात का बहुत महत्व है। प्रधानमंत्री ने भी इसे उच्च प्राथमिकता पर रखा है। वर्तमान में, वैश्विक बाजार में अपनी पहचान बनाए बिना कोई भी देश दो या अधिक दशकों तक विकास दर 9-10 प्रतिशत नहीं रख पाया है। विश्व कपड़ा निर्यात बाजार में वर्ष 1991 में चीन की भागीदारी 2 प्रतिशत थी, जो 2012 में बढ़कर 12.4 प्रतिशत हो गई है। बीच के दो दशकों में चीन ने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को एक आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था में रूपान्तरित करने में सफलता पाई है।

विश्व कपड़ा निर्यात बाजार में भारत की भागीदारी 1.7 प्रतिशत के निम्न स्तर पर है। उच्च विकास दर और अच्छे रोजगार निर्मित करने के उद्देश्य से हमें अपने देश में निर्यात आधारित पारिस्थितिकीय वातावरण बनाना होगा। इस रणनीति को तैयार करने के लिए हमें अपनी इन तीन प्रवृत्तियों को छोड़ना होगा- (1) आयात प्रतिस्थापना (2) सूक्ष्म और लघु उद्योग (3) रुपए की मजबूती।

आयात प्रतिस्थापन के माध्यम से किसी भी देश ने उच्च विकास दर प्राप्त नहीं की है। सूक्ष्म और लघु उद्योग कम उत्पादकता के साथ, जीवन-निर्वाह योग्य रोजगार के अवसर पैदा कर सकते हैं, परन्तु ये उच्च उत्पादकता के स्रोत नहीं बन सकते। इसके लिए मध्यम और बड़े उद्योगों की आवश्यकता होगी। रुपए की मजबूती से हमारे नागरिकों को आयात कम कीमत पर मिल सकगा, परन्तु विदेशियों को निर्यात करना हमें महंगा पडे़गा। होने वाले व्यापार घाटे के चलते ही सरकार, आयात पर शुल्क घटा देती है।

व्यापार आधारित वातावरण निर्मित करने के लिए विनिमय दर की वास्तविकता जरूरी है। इस नीति का लाभ हमने सन् 2000 में उठाया था, जब डॉलर की तुलना में रुपए का मूल्य 17.1 से गिरकर 47.7 पर आ गया था। इससे अनेक उत्पादकों के लिए प्रतिस्पद्र्धा का माहौल बन गया था। साथ ही हमने आयात में भी ढील दे दी थी। 2001-02 से लेकर 2011-12 के दशक में वस्तु एवं सेवाओं के निर्यात बढ़ने के साथ ही सकल घरेलू उत्पाद में भी भारी वृद्धि हुई थी । इस दशक के सकल घरेलू उत्पाद में आयात का प्रतिशत 14.7 से बढ़कर 30.8 प्रतिशत हो गया था। यही वह समय था, जब मोबाइल फोन शुरू हुए थे। अच्छे निर्यात के कारण ही हम इतनी बड़ी संख्या में मोबाइल फोन का आयात करने में सक्षम हुए थे अन्यथा यह संभव नहीं हुआ होता।

दुर्भाग्यवश 2014 से लेकर अब तक रुपए में आई मामूली गिरावट के कारण, अन्य प्रतिस्पद्र्धी देशों की तुलना में भारतीय उत्पाद 15 प्रतिशत महंगे रहे हैं। इससे भारतीय निर्यात को बहुत हानि हुई है। आने वाले समय में अगर चीन पर लगाया गया अमेरिकी शुल्क उसकी मुद्रा का अवमूल्यन करता है, और भारत अपनी मजबूत रुपए वाली रणनीति को जारी रखता है, तो हमारे उत्पादों के लिए प्रतिस्पद्र्धा से होने वाले नुकसान की समस्या बढ़ सकती है।

विनिमय दर को ठीक करना एक शुरुआत होगी। हमें उदारवादी आयात-निर्यात नीति भी तैयार करनी होगी, जिसमें बाजार की कार्यप्रणाली में आने वाले अवरोधों को दूर किया जा सके। मनमाने ढंग से शुल्क बढ़ाने से कुछ उत्पादकों को लाभ हो सकता है, लेकिन कुल-मिलाकर इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा। ऐसे शुल्क से कम कीमत वाले आयात की जगह अधिक कीमत वाले घरेलू उत्पादों के ले लेने का खतरा खड़ा हो जाता है। निर्यात पर भी प्रभाव पड़ता है। उच्च शुल्क और एंटी-डंपिंग ड्यूटी के कारण जब आयात में कमी आती है, तब आरबीआई रुपए का मूल्य बढ़ा देता है। इससे विदेशों में हमारा निर्यात महंगा हो जाता है।

आयात-निर्यात को सुचारू रखने के लिए व्यापार में सुगमता होनी आवश्यक है। जबर्दस्ती की मंजूरी की औपचारिकताओं, बंदरगाहों पर अनावश्यक देरी और परिवहन की उच्च कीमत के कारण निर्यात की कीमत बढ़ जाती है। व्यापार में सुगमता के मामले में, सीमा पार व्यापार में अभी भी भारत का स्थान नीचा है।

अंततः निर्यात में वृद्धि के लिए एक ऐसे वातावरण की आवश्यकता है, जिसमें मध्यम और बड़े दर्जे के उद्योग पनप सकें। इसके लिए श्रम और भूमि बाजार में लचीलापन होना चाहिए। पिछले पाँच वर्षों में श्रम सुधार किए गए हैं। इसमें नियत अवधि अनुबंध महत्वपूर्ण है, जिसके अनुसार करार के खत्म होने पर श्रमिकों को रोककर नहीं रख सकते।

अभी न्यूनतम मजदूरी की दर को नियंत्रण में रखना जरूरी है। न्यूनतम मजदूरी की ऊँची दर के कारण बहुत से लघु उद्योग भी अपने को सूक्ष्म उद्योग के दर्जे में रखना चाहेंगे। न्यूनतम मजदूरी को तभी बढ़ाना चाहिए, जब कौशल में भी विकास होता दिखे।

बड़े उद्योगों के लिए भूमि खरीदना, भारत में एक बड़ी समस्या है। भूमि का कोई भी बड़ा भाग अक्सर विवादों में घिरा रहता है। भूमि अधिग्रहण कानून में सुधार करना ही इस समस्या का हल है।

इसके साथ ही हमें ऑटोनामस एंप्लायमेंट ज़ोन पर काम करना चाहिए। इसमें 500 वर्ग कि.मी. या और बड़े क्षेत्र को भूमि और श्रम सुधार के लिए स्वायत्तता दे दी जाती है। चीन के शेंनजेंग प्रांत की तरह इन क्षेत्रों को तटीय ज़ोन में विकसित किया जाना चाहिए, जिससे ये निर्यात के केन्द्र बन सकें।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अरविंद पन्गढ़िया के लेख पर आधारित। 26 जून, 2019

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