
वर्तमान वित्त-वर्ष की प्रमुख आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए निर्यात संबंधी नीतियों में कुछ परिवर्तन और बजट में निर्यात संबंधी प्रावधान
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हाल ही में हुए आर्थिक सर्वेक्षण में मुख्यतः तीन बिंदुओं को रेखांकित किया गया था। इनमें पहला विनियमन यानि संगठनों और व्यक्तियों को आर्थिक स्वतंत्रता देने की बात कही गई है। दूसरे, सर्वेक्षण के अनुसार कार्पोरेट लाभ, 15 वर्षों के अपने चरम पर है। लेकिन वेतन और रोजगार स्थिर हैं। इसके कारण जन्मी आय असमानता चिंताजनक है, और इसका प्रभाव मांग और आर्थिक वृद्धि पर भी पड़़ रहा है। तीसरे, सर्वेक्षण में बताया गया है कि जब एक या दो दशक तक भारत की विकास दर लगातार 8% रहेगी, तभी हम विकसित कहे जा सकते हैं। वर्तमान बजट में निर्यात संबंधी मुद्दों को संबोधित किया गया है –
- 8% की वृद्धि का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए निर्यात् महत्वपूर्ण है। बजट में नीतिगत हस्तक्षेप किया गया है। यह अमेरिका द्वारा उठाए जा रहे कराधानों के मद्देनजर मददगार सिद्ध हो सकते हैं।
- यूरोपीय संघ भी अपने व्यापार को कार्बन संवेदनशील बनाने के प्रति संवेदनशील है। धारणीयता के लक्ष्य को प्राप्त करने की उनकी बदलती नीतियों का प्रभाव भारत के छोटे निर्यातकों पर पड़ने वाला है। ऋृणमुक्त कॉरपोरेट बैलेंस शीट एमएसएमई को अधिक ऋृण निकासी का लाभ देगी।
- बजट में छोटे निर्यातकों पर जोर दिया गया है। इससे पूंजी गहन विनिर्माण निर्यात में असंतुलन को संभाला जा सकता है। यदि भारत अंतरराष्ट्रीय व्यापार की बदलती गतिशीलता का लाभ उठाने में सफल होता है, तो यह बहुत बड़ा लाभांश दे सकता है।
- बजट में मंदी से उबरने के लिए उद्योगों को प्रोत्साहन दिया गया है।
बहरहाल, बजट में घोषित नीतिगत हस्तक्षेप बाहरी घटनाक्रमों से प्रभावित हो सकते हैं।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित। 3 फरवरी, 2025
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