निर्यात बढ़ाने का उपयुक्त समय

Afeias
01 Aug 2018
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Date:01-08-18

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वैश्विक स्तर पर निर्णय में आए उछाल में भारत के लिए भी अपार संभावनाएं छिपी हुई हैं। विश्व के उत्पाद का लगभग दो-तिहाई भाग ग्लोबल वेल्यू चेन में जाता है। इन वितरण श्रृंखलाओं के साथ जुड़कर देश में न केवल समृद्धि आएगी, बल्कि विकास को गति भी मिलेगी।

एक नजर निर्यात की स्थिति पर

भारत की अर्थव्यवस्था में निर्यात की बहुत अहम् भूमिका है। 2017-18 के सकल घरेलू उत्पाद में वस्तु एवं सेवाओं का योगदान केवल 12 प्रतिशत रहा। मई 2017 की तुलना में मई 2018 में 20 प्रतिशत निर्यात बढ़ा। इसके पीछे पिछले पाँच सालों में आई निर्यात की गिरावट एक कारण हो सकती है।

वहीं, दक्षिण कोरिया के सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात का 42 प्रतिशत योगदान है। 2006 में जब चीन की विकास दर 13 प्रतिशत थी, उसके सकल घरेलू उत्पाद में निर्यात का योगदान 37 प्रतिशत था।

भारत के लिए निर्यात में वृद्धि का सही समय

  • भारतीय निर्यातकों को कच्चे माल पर वस्तु एवं सेवा कर का प्रतिदाय समय पर मिले। इससे अल्पावधि में निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। मध्यम एवं दीर्घकाल के लिए हायर एक्सपोर्ट की निरंतरता बनी रहनी चाहिए। यह तभी संभव है, जब निर्यात की दिशा में प्रगति कर रही कंपनियों के लिए विभिन्न बाधाओं को हटाया जाए।
  • बड़ी फर्मों की प्रति ईकाई लागत कम आती है। इन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी फायदा मिलता है, और इनकी उत्पादकता बढ़ती जाती है। भारत के मोटर वाहन उद्योग में यह क्षमता है। इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • उत्पादन कंपनियों को समूहों में काम करने के लिए बढ़ावा दिया जाए। इससे वे बड़े स्तर पर काम कर सकती हैं। तटीय क्षेत्रों में सरकार ऐसा ही करने का प्रयत्न कर रही है। बंदरगाहों के निकट होने के कारण निर्यात में भी गति रहती है। समूह बनाकर निर्माण करने से कंपनियों की लागत कम होती है, और तटीय क्षेत्र होने से निर्यात में समय और लागत कम हो जाती है।
  • 2017 की विश्व बैंक की ‘सीमा पार व्यापार’ रिपोर्ट की 190 अर्थव्यवस्थाओं में भारत का 146वां स्थान है। इसमें निर्यात में लगने वाला समय, लागत, सीमा-स्वीकृति और घरेलू ट्रांसपोर्ट प्रक्रिया को शामिल किया गया था। चीनी सीमा पर की जाने वाली औपचारिकताओं की तुलना में भारतीय निर्यातकों को चार गुणा अधिक समय लगा। समय और लागत में आने वाली बाधाओं को कम किया जा सकता है।
  1. हमें बंदरगाहों पर डिजिटलीकरण की ओर ध्यान देना होगा। इसकी बहुत सी प्रक्रिया को ऑन लाइन किया जा सकता है।
  2. मुख्य बंदरगाहों को इलेक्ट्रानिक डाटा इंटरचेंज में ढाला जाए।
  3. 2015 से जून 2018 तक केन्द्रीय सीमा व राजस्व बोर्ड ने 173 टैरिफ संबंधी सूचना जारी की। इससे व्यापार नियमों में जटिलता आती है। इसे कम किया जाना चाहिए।
  • भारत में अनेक मामले राज्यों के अधीन हैं। ईज़ ऑफ डुईंग बिजनेस के अंतर्गत पानी और बिजली के कनेक्शन, सम्पत्ति पंजीकरण आदि का काम राज्यों द्वारा किया जाता है। अतः कंपनियों के निर्यात मार्ग में सुगमता लाने में राज्यों की बड़ी भूमिका है।
  • वैश्विक स्तर पर निर्यात में मानकों और तकनीकी विकास का स्थान बढ़ता जा रहा है। भारतीय उद्योग मंत्रालय, भारतीय निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय मानकों का उपयोग करने की सलाह देता है। इससे निर्यातकों को ग्लोबल वेल्यू चेन से जुड़ने में आसानी रहेगी।

आज जहाँ विश्व के अनेक देश आत्मकेन्द्रित अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो रहे हैं, भारत के निर्यातकों के लिए वैश्विक बाजार में पैर पसारने का अच्छा मौका है। इसके लिए भारत को निर्यात के स्तर और आकार को बढ़ाना, निर्यात मार्ग की बाधाओं को दूर करना और वैश्विक मानकों को अपनाना होगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 20 जुलाई, 2018

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