कृषि-उत्पाद निर्यात नीति में बदलाव की जरूरत

Afeias
30 Sep 2021
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Date:30-09-21

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केंद्र सरकार ने कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने हेतु 2022 तक 60 अरब डॉलर का लक्ष्य रखा है। मंत्रालय के सूत्रों से पता चलता है कि कृषि-खाद्य एवं प्रसंस्करण उद्योग की निर्यात हिस्सेदारी मात्र 11% है।

भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था में तेजी से रूपांतरण भी हो रहा है। यह प्राथमिक से द्वितीयक उत्पादों की ओर बढ़ रही है। इसमें प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की विभिन्न किस्में तैयार करके बाजार में लाई जाती हैं।

कृषि से जुड़ी निर्यात-नीति का लक्ष्य एवं निहित कमियां –

  • नीति का मुख्य उद्देश्य निर्यात में विविधता और विस्तार लाना है, ताकि प्राथमिक उत्पादों से अधिक जल्दी खराब होने वाले व प्रसंस्कृत खाद्य सहित उच्च मूल्य की वस्तुओं का निर्यात बढ़ाया जा सके।
  • इस हेतु भारतीय निर्यातकों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पडता है।
    • निर्यात निरीक्षण एजेंसी द्वारा अनिवार्य प्री-शिपमेंट परीक्षा, जो लंबी और महंगी होती है।
    • रेडी-टू-ईट खाद्य पदार्थों के लिए भी अनिवार्य मसाला बोर्ड प्रमाणीकरण की आवश्यकता होती है।
    • अधिकांश राज्य सरकारों द्वारा निर्यात की रणनीतिक योजना का अभाव है।
    • निजी क्षेत्र द्वारा निवेश को हतोत्साहित करने वाली कृषि नीति की कमी है।
    • अधिकांश विकसित देशों में मांस व डेयरी आधारित उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध है।
    • भारत से प्रसंस्कृत खाद्य के आयात हेतु अमेरिका द्वारा वरीयता की सामान्य प्रणाली को वापस लेना।
    • अमेरिका को निर्यात सामग्री के साथ स्वास्थ प्रमाण पत्र भी देना पड़ता है।
    • जैविक उत्पादों पर विकसित देशों के साथ अनुकूल समझौते का अभाव है।

ये कुछ ऐसे कारण हैं, जो भारतीय कृषि से जुड़े प्राथमिक व द्वितीयक उत्पादों के निर्यात पर असर डालते हैं।

आगे की राह –

  • केंद्र की नीति खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों के पोषण, उत्पाद की कम लागत, वैश्विक खाद्य गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने, प्रसंस्कृत खाद्य के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सहायक वातावरण बनाने की दिशा में होनी चाहिए।
  • विकसित देशों ने खाद्य पदार्थों के आयात के लिए उच्च मानक निधारित किए हैं। प्रतिष्ठित भारतीय ब्रांडों को वैश्विक स्तर पर निर्यात के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि वे कोडेक्स के विश्व मानक का अनुपालन कर सकते हैं।
  • भारतीय कंपनियों को लागत की प्रतिस्पर्धा, वैश्विक खाद्य गुणवत्ता मानक एवं प्रौद्योगिकी को अनुकूल बनाकर निर्यात बाजार में उतरना चाहिए।

भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में वैश्विक लाभ लेने की क्षमता है। उसे सही दिशा और साधन दिए जाने चाहिए।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित पराश्रम पाटिल के लेख पर आधारित। 22 सितंबर, 2021

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