भारत के ‘स्टील फ्रेम’ की जांच की जरूरत है
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भारतीय प्रशासनिक सेवा और बड़े आकार की नौकरशाही के भीतर आ रही लगातार चुनौतियों ने प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता की ओर ध्यान खीचा है। ये सुधार नौकरशाही को आधुनिक बनाने की दिशा में होने चाहिए।
कमियां –
- प्रशासनिक सेवाओं में राजनीतिक हस्तक्षेप
- विशेषज्ञता की कमी
- भ्रष्टाचार और अकुशलता
- नीतियों का खराब कार्यान्वयन
- प्रशासनिक स्वतंत्रता की कमी, तथा
- जवाबदेही की कमी।
सुधार की चुनौतियाँ –
- स्वतंत्रता के बाद से, 50 से अधिक आयोगों और समितियों को आईएएस में सुधार का काम सौंपा जा चुका है। इन्होंने विशेषज्ञता तथा जवाबदेही आदि कई मुद्दों पर सुधार का खाका तैयार किया, परंतु नौकरशाही की जड़ता और राजनीतिक प्रतिरोध के कारण इनमें से कई सिफारिशें लागू नहीं हो पाई हैं।
- पार्श्व प्रवेश, प्रदर्शन-आधारित पदोन्नति और विशेष प्रशिक्षण के प्रस्तावों को अक्सर सेवा के भीतर ही प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है।
- सिविल सेवा मानक, प्रदर्शन और जवाबदेही विधेयक (2010), जो नौकरशाहो को मनमाने तबादलों से बचाते हैं, विधायी अधर में लटके हुए हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में सिविल सेवा बोर्ड स्थापित करने का निर्देश दिया था। प्रवर्तन की कमी के कारण यह अप्रभावी रहा है।
चुनौतियों का समाधान –
- भर्ती में योग्यता और डोमेन विशेषज्ञता की प्राथमिकता होनी चाहिए।
- राजनीतिक रूप से प्रेरित तबादलों से बचाकर और नीति निर्माण में विशेषज्ञता को बढ़ाकर, जबावदेही और दक्षता को बढ़ाया जा सकता है।
- नौकरशाही के प्रदर्शन को ट्रैक करने के लिए एक मजबूत ढांचे में निवेश किया जाना चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित विनोद भानू के लेख पर आधारित। 24 दिसंबर 2024
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