राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग की जरूरत

Afeias
11 Jun 2021
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Date:11-06-21

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केंद्र सरकार ने अधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा शर्तें) अध्यादेश, 2021 के द्वारा अनेक अपीलीय ट्रिब्यूनल और प्राधिकरण को समाप्त करके इनके अधिकारों को अन्य न्यायिक निकायों को हस्तांतरित कर दिया है। इस अध्यादेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है।

सरकार के इस कदम की घोर आलोचना की जा रही है। इसके माध्यम से सरकार ने फिल्म प्रमाणन अपीलीय ट्रिब्यूनल को भी समाप्त कर दिया है। ऐसा करने से पहले सरकार ने इससे जुड़े हितधारकों से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया है, और न ही इससे पड़ने वाले प्रभावों का न्यायिक आकलन करवाने की कोशिश की।

राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग का प्रस्ताव –

वर्ष 1997 में एल. चंद्रकुमार बनाम केंद्र सरकार मामले के बाद से ही एक राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग के गठन का प्रस्ताव किया गया है। यह एक ऐसा स्वतंत्र निकाय होगा, जो ट्रिब्यूनल के कार्यकलापों का निरीक्षण करेगा, नियुक्तियां और अनुशासनात्मक कार्यवाही करेगा, तथा ट्रिब्यूनल की प्रशासनिक व संस्थागत जरूरतों का ध्यान रखेगा।

भारत में ट्रिब्यूनल के कामकाज, सदस्यों की नियुक्ति और सेवानिवृत्ति मे अक्सर कार्यपालिका का हस्तक्षेप देखा जाता है। यही कारण है कि संवैधानिक संशोधन के द्वारा एक ऐसे राष्ट्रीय आयोग का गठन कर दिया जाए, जो ट्रिब्यूनल के कार्यों, संचालन और वित्तीय स्वतंत्रता को विधायी संरक्षण दे सके।

राष्ट्रीय आयोग के गठन का एक लाभ यह भी है कि इससे सभी अधिकरणों के प्रशासन में एकरूपता लाई जा सकेगी।

राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग के प्रशासनिक दायित्व

आयोग अपने स्वयं की प्रशासनिक प्रक्रियाएं और प्रदर्शन स्तर का निर्धारण कर सकता है। सदस्यों की नियुक्ति अपने स्तर पर कर सकता है। वेतन-भत्तों एवं अन्य सेवा शर्तों को आयोग को सौपें जाने से उनकी स्वतंत्रता बनी रहेगी।

राष्ट्रीय आयोग के गठन तक ट्रिब्यूनल की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय को सौंपी गई है। राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल आयोग की स्थापना के लिए वर्तमान न्यायाधिकरण प्रणाली में आमूलचूल पुनर्गठन की आवश्यकता होगी।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित आकांक्षा मिश्रा और सिद्धार्थ मेड्रेंकर राव के लेख पर आधारित। 17 मई, 2021

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