राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक

Afeias
06 Apr 2018
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Date:06-04-18

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संविधान के अनुच्छेद 47 में कहा गया है कि जनता के स्वास्थ्य को दुरूस्त रखना सरकार का कर्त्तव्य है। हम लगातार चिकित्सा सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। चिकित्सों और अस्पतालों की कमी के साथ-साथ तीन स्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं की लचर स्थिति ने कुल मिलाकर स्वास्थ्य को खिलवाड़ बना रखा है। इन स्थितियों को देखते हुए सरकार राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (नेशनल मेडिकल कमीशन) विधेयक लाने की तैयारी में है।

स्वास्थ्य सेवाओं की वर्तमान स्थिति –

  • भारत में दस लाख चिकित्सक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के चिकित्सक जनसंख्या अनुपात में संतुलन स्थापित करने के लिए तीन लाख चिकित्सक और चाहिए।
  • सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञों की 81% कमी है।
  • इस कमी का प्रभाव गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों पर सबसे अधिक पड़ता है। इसके कारण वे झोलाछाप डॉक्टरों के शिकंजे में फंस जाते हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में ‘आधुनिक दवाओं‘ का ज्ञान देने वालों में से 82.2% लोगों के पास चिकित्सकीय योग्याता नहीं है।
  • हमारी कुल जनसंख्या का 69% भाग ग्रामीण है। इनके लिए मात्र 21% चिकित्सक है।
  • एक तरफ भारत मेडिकल टूरिज्म का केंद्र बनता जा रहा है, तो दूसरी ओर यहाँ के सरकारी अस्पतालों में अक्सर मरीज जमीन पर लेटे मिलते हैं।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाओं से जुडा यह विधेयक इन सभी समस्याओं के निराकरण हेतु बनाया गया है।

विधेयक की मुख्य बातें :

  • देश में प्रतिवर्ष निकलने वाले 60,000 चिकित्सकों में से आधे युवा, निजी चिकित्सा कॉलेजों से आते हैं। इन चिकित्सा महाविद्यालयों को लाइसेंस देने और इनके नियमन में बडी अनियमितताएं हैं। न तो इनके पास पर्याप्त संसाधन हैं, और न ही योग्य शिक्षक। चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता की स्थिति इन निजी कॉलेजों में बहुत खराब है। विधेयक के माध्यम से इन महाविद्यालयों की गुणवत्ता को बनाए रखने का प्रयत्न किया जाएगा। एक स्तर तक के मानकों को पूरा न कर पाने की स्थिति में आर्थिक दण्ड दिया जाएगा। कॉलेज की मान्यता भी समाप्त की जा सकती है।
  • विधेयक के माध्यम से सरकार, निजी महाविद्यालयों की 40% सीट पर फीस का नियमन कर सकती है।
  • सरकार ने 2022 तक डेढ़ लाख प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों की हालत सुधारने के लिए 7,70,000 आयुष (आयुर्वेद, योग नैचरोपैथी, यूनानी और होम्योपैथी) स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को मध्यस्थ की तरह काम में लाने पर विचार किया है।

इसके अंतर्गत ये आयुष स्वास्थ्य – प्रदाता, एक ब्रिज कोर्स के द्वारा आधुनिक एलोपैथी दवाओं का ज्ञान प्राप्त करके उन्हें नियंत्रित रूप में मरीजों को लिखकर देने के अधिकारी हो जाएंगे। तेरह राज्यों ने इन चिकित्सकों को ऐसी अनुमति दे दी है। चीन में भी इस प्रकार की व्यवस्था है।

विधेयक के माध्यम से एक प्रकार की चिकित्सा पद्धति के विशेषज्ञ को दूसरी पद्धति की मान्यता देने की कोई व्यवस्था नहीं है। अतः उन्हें ऐलोपैथी चिकित्सक और आयुष चिकित्सक जैसी दो अलग श्रेणियों में ही रखा गया है। देश के सभी प्राइवेट डॉक्टर विधेयक के इस प्रावधान का जबरदस्त विरोध कर रहे हैं।

सार्वजनिक चिकित्सा सेवाओं में घुन लग चुका है, जिसे साफ करना एक दुष्कर प्रक्रिया होगी। सरकार का प्रयास प्रशंसनीय कहा जा सकता है। परंतु यह लंबे समय के साथ-साथ दृढ़ निष्ठा की मांग करता है।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित रूहा सदब के लेख पर आधारित।

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