निजता पर प्रभुत्व या निजता की सुरक्षा

Afeias
28 Feb 2020
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Date:28-02-20

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हाल ही में नीदरलैण्ड के एक न्यायालय ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए एक डिजीटल आइडेंटिफिकेशन योजना पर रोक लगा दी है। यह दुनिया भर में चल रहे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस सिस्टम के संदर्भ में मायने रखता है। यह ऐसे समय में किया गया है, जब भारत में भी पहचान, नागरिकता और गोपनीयता पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं।

डच योजना क्या थी ?

यह सिस्टम रिस्क इंडीकेटर नामक एक आइडेंटिफिकेशन सिस्टम है, जिसे एस वाई आर आई के नाम से जाना जाता है। इसे डच सामाजिक मामलों के मंत्रालय ने 2014 में, धोखे से सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने वालों को पकड़ने के लिए तैयार किया था।

न्यायालय ने नागरिकों की गोपनीयता ओर मानवाधिकार संबंधी चिंताओं के कारण इसके खिलाफ फैसला सुनाया है।

भारत के संबंध में कितना प्रासंगिक –

भारत में सर्वोच्च न्यायालय ने भी पहचान के लिए बनाए आधार कार्ड के उपयोग को सीमित करते हुए, सामाजिक हित और निजता में एक संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया था। डच मामला एल्गोरिदम निर्णय-क्षमता से जुड़ा था, जबकि भारत में आधार का मामला डेटा-कलेक्शन से जुडा है। दोनों मामलों में नागरिकों के हितों की रक्षा का प्रयत्न किया गया है।

डच न्यायालय का निर्णय इस बात का उदाहरण भी प्रस्तुत करता है कि सरकारी निगरानी के विरूद्ध डेटा संरक्षण विनियमन का उपयोग कैसे किया जा सकता है। न्यायालय ने निर्णय में स्पष्ट किया कि सिस्टम रिस्क इंडीकेटर कैसे उनके जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन में निर्धारित पारदर्शिता और डेटा न्यूनीकरण के सिद्धांत का उल्लंघन कर रहा था। इस निर्णय के बाद यूरोप के अन्य देशों में फेस रेकगनीशन जैसी कई तकनीकों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है।

भारत का आगामी डेटा सुरक्षा कानून –

भारत का डेटा सुरक्षा कानून, फिलहाल संयुक्त प्रवर समिति के पास विश्लेषण के लिए गया हुआ है। अपने वर्तमान स्वरूप में यह सरकारी डेटा प्रसंस्करण को व्यापक छूट देता है। प्रस्तावित नियमन में अमेरिका के कानून की तरह ही अनेक खामिया हैं, जिनका संभावित लाभ उठाया जा सकता है।

  • प्रस्तावित विधेयक में एक डेटा प्रोटेक्शन आथॉरिटी की नियुक्ति की बात कही गई है। पूर्व में इस अथॉरिटी के पास निजी संवेदनशील डेटा को वर्गीकृत करने के अधिकार थें, जो अब केंद्र सरकार के पास हैं।
  • केंद्र सरकार ही किसी सोशल मीडिया कंपनी को महत्वपूर्ण डेटा के लिए जिम्मेदारी सौंप सकती है।
  • कानून में केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी एजेंसी को निजी डेटा प्रोसेस करने के लिए छूट दे सकती है।
  • किसी भी सरकारी एजेंसी पर डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी, डेटा के दुरूपयोग से संबंधित दोषारोपण नहीं कर सकती और न ही दंड-राशि लगा सकती है।
  • सरकार ने नॉन-पर्सनल डेटा पर अपने अधिकार का रास्ता साफ कर लिया है। यह डिजीटल अर्थव्यवस्था और नीतियों के निर्णाण को बढ़ावा देने के लिए सरकारी संपत्ति माना जा सकता है। वास्तव में ऐसा डेटा किसी कंपनी की बौद्धिक संपदा होता है।

डेटा सुरक्षा कानून की कमियों के चलते निजी हित में बाधाओं के साथ-साथ भारत में निवेश के इच्छुक व्यापारियों के लिए भी संदेह का आधार उत्पन्न होता है। उम्मीद की जा सकती है कि प्रवर समिति उच्च न्यायालय के निर्णय का संज्ञान लेते हुए ऐसे सुधार प्रस्तुत करे, जो जनहित और राष्ट्रहित में हों।

विभिन्न स्रोतों  पर आधारित।

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