भारत के लिए ‘विकसित’ देश का टैग

Afeias
27 Feb 2020
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Date:27-02-20

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हाल ही में अमेरिका ने अपनी वर्गीकृत सूची में से भारत सहित लगभग एक दर्जन देशों को बाहर कर दिया है। अब व्यापारिक उद्देश्यों के लिए इन देशों को ‘विकासशील’ की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा। विकसित देश मानते हुए इन्हें मिलने वाले अनेक व्यापारिक लाभों से दूर कर दिया जाएगा। भारत के लिए यह संशय की स्थिति है। अमेरिकी राष्ट्रपति की आगामी भारत यात्रा को देखते हुए अब भारत-अमेरिका के बीच किसी समझौते का होना संदेहजनक हो गया है।

‘विकासशील देश’ का अमेरिका के लिए क्या अर्थ है ?

अमेरिका का यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेसन्टेटिव विभाग एक ऐसी सूची रखता है, जिसमें विभिन्न देशों को ‘विकासशील’, ‘विकसित और ‘अल्प-विकसित’ के रूप में विभाजित किया जाता है। ‘विकासशील’ की सूची में आने वाले देशों को उन दंडात्मक करों से मुक्ति मिल जाती है, जो सामान्यतः विकसित देशों की सामग्री के व्यापार पर लगाए जाते है। अमेरिका के 1974 के ट्रेड एक्ट में गरीब देशों की सहायता के उद्देश्य से विकासशील देशों की कैटेगरी बनाई गई थी। विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत उन देशों की व्यापारिक सुविधाएं बढ़ाई गई थीं, जो अपने को गरीब देशों की श्रेणी में मानते थे। विश्व व्यापार संगठन के लगभग दो तिहाई देश, अपने को विकासशील की सूची में रखना चाहते हैं।

क्या यह वर्गीकरण न्यायोचित है ?

इस प्रकार का वर्गीकरण मनमाना है। पिछले कुछ दशकों में भारत और चीन ने जैसा विकास किया है, उसे देखते हुए उनके स्पेशल स्टे्टस को खत्म करने की मांग होती रही है।

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति के चीन के साथ भी इन्हीं मुद्दों पर आर्थिक विवाद चल रहे हैं।

अभी तक भारत को लगभग 2000 वस्तुओं के आयात शुल्क से छूट मिलती रही है। अमेरिका ने इनमें से कुछ की छूट को गत वर्ष समाप्त कर दिया था। अपने कदम के पक्ष में अमेरिका ने जी 20 क्लब में भी दलीलें दी हैं।

अमेरिकी निर्णय का विश्व-व्यापार पर प्रभाव

कर से छूट मिली वस्तुओं पर कर का भार पड़ने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वे वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। इससे मंदी की मार से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था की कमर और टूट जाएगी। अगर अमेरिका विकासशील सूची से बाहर हुए देशों ने बदले में अमेरिकी सामान पर कर बढ़ाना शुरू कर दिया, तो देशों के बीच कर-युद्ध छिड़ जाएगा।

हाल ही में भारत ने आयातित अमेरिका डेयरी उत्पादों के करों पर दोबारा विचार करने की बात कही थी। अमेरिका ने भारत जैसे विकासशील देशों में अपनी कंपनियों की सीमित पहुँच पर शिकायत की थी। अगर इस प्रकार के व्यापारिक दांवपेंच काम कर जाते हैं, तो इससे देशों के आपसी व्यापारिक अवरोध कम होंगे और वैश्विक अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।

फिलहाल तो अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदार देश अपने घरेलू उत्पादकों के हितों की रक्षा का प्रयत्न कर रहे हैं। इसलिए करों की दरों के कम होने की कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही है।

उम्मीद की जा सकती है कि अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा में इसका उपयुक्त समाधान निकाला जा सके।

‘द हिंदू‘ में प्रकाशित प्रशांत पेरूमल जे. के लेख पर आधारित। 16 फरवरी 2020

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