तेल संकट में छिपा राष्ट्रीय हित
Date:14-05-20 To Download Click Here.
हाल ही में क्रूड ऑयल डब्ल्यू टी आई के मूल्यों के भयंकर स्तर तक गिरने की खबरें छायी रही हैं। कच्चे तेल के दामों का निगेटिव टेरिटरी में आने का अर्थ था कि उत्पादकों को अपने ग्राहकों को तेल के साथ-साथ मूल्य भी अदा करना पड़ता। सवाल यह है कि उत्पादक ऐसा क्यों करना चाहेंगे ? इससे अच्छा तो वे तेल को कहीं भूमि या जल में बहा देंगे। इससे जुड़े अन्य प्रश्न भी खड़े हो जाते हैं कि परिवर्तन आ गया है ? इसके भू-राजनैतिक प्रभाव क्या होंगे ? इन सबका भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
अमेरिकी परिदृश्य पर एक नजर
अमेरिका के पास अब कच्चे तेल के भंडारण की क्षमता चुक गई है। इसके ट्रेडर इस समय डिलीवरी लेकर खतरा मोल लेना नहीं चाहते। उनके लिए कांट्रैक्ट को बेचना भी आसान नहीं है , क्योंकि सभी के साथ एक सी ही समस्या आ रही है। अतः कांट्रैक्ट समाप्त होने के आखरी दिन व्यापारियों ने भुगतान कर दिया। लेन.देन नकदी में नहीं किया गया। ऐसा करने वाले लोग कागजी तौर पर काम वाले सट्टेबाज थे। ये तेल उत्पादक नहीं थे। इससे तेल के दाम नाटकीय मोड़ के बाद पॉजिटिव टेरिटरी में आ गए।
इससे एक बात स्पष्ट हो गई कि अमेरिका क्या, पूरे विश्व के पास तेल भंडारण की क्षमता नहीं रही है। इसका कारण कोविड-19 के चलते मांग का घटना रहा है। अब जब तक मांग नहीं बढ़ती, तब तक तेल के दाम परिवर्तनशील रहेंगे।
भारत की स्थिति
वर्तमान परिदृश्य में हमारे लिए दो विकल्प हो सकते हैं।
- प्रत्येक तेल उत्पादक को बजट संबंधी संकट का सामना करना पड़ेगा। सऊदी अरब और कुवैत आदि तो ऋण बढ़ाकर या अपने रिजर्व फंड से सामाजिक और आर्थिक प्रतिबद्धता को बनाए रखेंगे। ईराक , ईरान आदि के साथ वैसी सुविधाएं न होने से वे राजनैतिक और सामाजिक संकट का सामना कर सकते हैं। ऐसे में भारत की तेल-आपूर्ति पर प्रभाव पड़ सकता है।
- अगर तेल के मूल्य निगेटिव टेरिटरी में जाते हैं, और हमारे सार्वजनिक तेल उपक्रमों को भविष्य के लिए कांट्रैक्ट करने की व्यवस्था कर दी जाती है, तब भी हमारे पास तेल भंडारण की सुविधा नहीं हो पाएगी। डब्ल्यू टी आई की गुणवत्ताए हमारी रिफाइनरियों की जरूरतों के अनुरूप हो, इस बात की भी गारंटी नहीं होगी।
इसके अलावा जब तक हम अपने ट्रेडर्स को कैग, सीबीआई आदि के नियंत्रण से मुक्त नहीं करते, तब तक हम राष्ट्रीय हित में तेल के गिरे हुए या परिवर्तनशील दामों का लाभ नहीं उठा सकते।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित विक्रम एस. मेहता के लेख पर आधारित। 24 अप्रैल 2020