भारत में शैक्षणिक नैतिकता का संकट

Afeias
06 Sep 2023
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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति और जी 20 में भारत की अध्यक्षता के साथ भारत से शिक्षा के वैश्विक मंच पर अपना स्थान बनाने की उम्मीद कर सकता है। लेकिन इस क्षेत्र की दो बाधाएं ऐसी हैं, जो हमें पीछे धकेलती हैं। इनमें से एक ऐसा अनैतिक शैक्षणिक अभ्यास है, जो डेटा में हेरफेर करता है –

  • हम किसी ऐसी दवा या परमाणु रिएक्टर की क्षमता पर भरोसा नहीं कर सकते, जिसे डेटा के हेरफेर से प्रभावी साबित कर दिया गया हो। विश्व के कई शैक्षणिक संस्थानों में ऐसा करने की कोशिश की जाती रही है, लेकिन व्यवस्थित दंड-प्रावधानों के माध्यम से इस पर अंकुश नहीं लगाया गया है।

भारत में ऐसा नहीं हो रहा है। यहाँ के शैक्षणिक संस्थानों की वेबसाइटों पर किसी भी तरह की नैतिक संहिता नहीं मिलती है। कई शैक्षणिक निकायों को डेटा के हेरफेर और यहाँ तक कि    यौन दुर्व्यवहार के प्रति सचेत किया गया है, लेकिन वे इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाते हैं। कई वर्षों पहले, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ने अकादमिक नैतिकता पर राष्ट्रीय नीति का मसौदा तैयार किया था, परंतु उसे औपचारिक मान्यता नहीं मिल सकी।

  • दूसरी समस्या साहित्यिक चोरी की है। हाल ही में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के अध्यक्ष ने एक पुरानी छात्र-पत्रिका के अपने लेख की जांच के बाद इस्तीफा दे दिया था। लेकिन भारत में ऐसी स्थिति होने पर पत्रिका के संपादक को परेशानी होती। हमारे संस्थानों के गाइड कई बार अपने नाम पर लेख लिखवाया करते हैं। उनके मातहत शोध विद्यार्थी सिर झुकाकर उनके लिए लिखते हैं।

विद्यार्थियों के मामले में ‘नकल’ एक बड़ी समस्या बन चुकी है। इन सबके साथ हमारी शैक्षणिक संस्कृति को विश्व स्तर पर बेईमान माना जाता है। यह हमें विश्व स्तरीय प्रतिस्पर्धा में पीछे धकेलती है।

इन समस्याओं के निवारण के लिए जरूरी है कि हमारे अकादमिक नेता ऐसा व्यवहार करें, जो राष्ट्रहित में हो।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित सुनील मुखी के लेख पर आधारित। 31 जुलाई, 2023

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