कृषि-संकट से निपटने के कुछ उपाय

Afeias
07 Feb 2019
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Date:07-02-19

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देश में लंबे अरसे से कृषि संकट चला आ रहा है। भारतीय कृषि का प्राथमिक संकट संकुचित होते खेतों के आकार में दिखाई देता है। 1970-71 के दौरान जहाँ खेतों का औसत क्षेत्र 2.28 हेक्टेयर हुआ करता था, वह सिमटकर 1.08 हे. रह गया है। इसके साथ ही कृषि बाजारों की कमी, आपूर्ति समूहों एवं विपणन केन्द्रों की कमी, प्रसंस्करण उद्योग व कोल्ड स्टोरेज की कमी के चलते कृषकों की समस्याएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं।

किसानों को राहत पहुँचाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा की जाने वाली ऋण-माफी की घोषणा को आर्थिक प्रगति की दिशा में रोड़ा माना जा रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य और बाजार भाव के बीच के अंतर को सहयोग राशि से पूरा करने की योजना भी चुनौतीपूर्ण रही है। आय के रूप में सहयोग राशि (इन्कम सपोर्ट स्कीम) की योजना अपेक्षाकृत सफल मानी जा सकती है। तेलंगाना ऐसा कर रहा है।

  • तेलंगाना की इस योजना को अगर पूरे देश में लागू किया जाए, तो इसका खर्च 2.5 लाख करोड़ रुपये आता है। अभी तक योजना में प्रति एकड़ सहयोग राशि देने का प्रावधान रखा गया है। अगर इस योजना को छोटे और सीमांत किसानों तक सीमित कर दिया जाए, तो इसकी कीमत 60,000-70,000 करोड़ रुपये तक घट सकती है।
  • इस योजना के अलावा बैंकों को यह छूट दी जानी चाहिए कि वे किसान क्रेडिट कार्ड के उन धारकों को वार्षिक नवीकरण की सुविधा प्रदान कर सकें, जो केवल ब्याज का भुगतान कर रहे हैं। अभी तक यह सुविधा केवल उनके लिए है, जो मूल और ब्याज दोनों का ही भुगतान करते हैं। फसल की कटाई के बाद किसानों की आय नकद में ही होती है। यह नगद राशि कीटनाशक और उर्वरक की खरीदारी, श्रमिकों के वेतन, ट्रेक्टर के किराए आदि में खर्च हो जाती है। अतः वर्ष के अंत तक किसान क्रेडिट कार्ड के अंतर्गत लिए गए ऋण का पूरा भुगतान करना संभव नहीं हो पाता है। दूसरी ओर, छोटे व्यवसाय के लिए दिए गए ऋण पर भी केवल ब्याज के भुगतान पर ही वार्षिक समीक्षा/नवीकरण करने का प्रावधान है। फिर कृषि क्षेत्र में ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता है?
  • 2018-19 के केन्द्रीय बजट में घोषणा की गई थी कि काश्तकार किसानों को भी ऋण-सुविधा उपलब्ध कराने के बारे में केन्द्र, राज्यों के साथ मिलकर कोई उचित रास्ता निकालेगा। इस पर अमल किया जाना चाहिए।
  • वर्तमान में, रेहननामा हुई फसल को द सेन्ट्रल रजिस्ट्री ऑफ सिक्योरिटाइजेशन एसेट रिंकंस्ट्रक्शन एण्ड सिक्योरिटी इंटरेस्ट ऑफ इंडिया के नियमों के अधीन पंजीकृत करना अनिवार्य है। इससे बैंकों की परेशानी बढ़ती है, और बिना किसी लाभ के लागत भी बढ़ती है। इसके अलावा छोटे व सीमांत किसानों के मामले में तो फसल-सुरक्षा का भार लिए जाने का कोई उदाहरण भी नहीं मिलता। अतः इस प्रक्रिया को खत्म कर दिया जाना चाहिए। इससे अच्छा है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बदलाव करके, सभी फसलों को इसमें शामिल कर लिया जाए।

इन उपायों के साथ किसानों को थोड़ी राहत अवश्य पहुँचाई जा सकती है।

द टाइम्स ऑफ इंडियामें प्रकाशित सौम्य कांति घोष के लेख पर आधारित। 15 जनवरी, 2019

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