आयुष्मान भारत : प्रणालीगत परिवर्तन की चुनौती   

Afeias
08 Feb 2019
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Date:08-02-19

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अभी तक भारत में जनस्वास्थ्य सेवाएं उन योजनाओं पर चलती चली आ रही थीं, जिनमें लाभ तो अल्पकालिक ही होता था, परन्तु उनका भावनात्मक प्रभाव अधिक होता था। आयुष्मान भारत ने इस व्यवस्था में परिवर्तन करके इसे बजट और बुनियादी ढांचे में मजबूती दे दी है। साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल और एक प्रकार से परोपकारी बना दिया है। यह बहुत कुछ वैसा ही है, जैसे किसी आपदा के समय जटिल एवं बिगड़ी व्यवस्था में सुधार की अपेक्षा लोगों को पहले राहत पहुँचाया जाना श्रेयस्कर होता है। इस योजना की तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएं तो वाकई अंतरिम राहत पहुँचाने वाली सिद्ध हो रही हैं।

स्वास्थ्य योजना कोई भी हो, इससे जुड़े कुछ सामान्य सवाल हमेशा ही सिर उठाए खड़े दिखाई देते हैं। क्या हमारे सरकारी अस्पतालों को नागरिकों को समान स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए किसी योजना की जरूरत है? अगर है, तो उन निर्धनों का क्या होगा, जो इस योजना का लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं, या इसके दायरे में आ नहीं पाते? यदि इन सब प्रश्नों के उत्तर ढूंढने निकलें, तो आयुष्मान भारत जैसी विशाल स्वास्थ्य योजना से संबंधित कुछ संशय भी जाग जाते हैं।

  • इस योजना ने जनता के उस वर्ग को निश्चित तौर पर राहत पहुँचाई है, जो अव्यवस्थित सरकारी अस्पतालों और महंगे निजी अस्पतालों के बीच फंसे हुए हैं।
  • इस योजना के साथ यह संशय भी बना हुआ है कि यह लंबी अवधि या लांग टर्म पॉलिसी के रूप में कैसी सिद्ध होगी। अगर इससे चुनावी लाभ मिलता है, तो यह लंबे समय से चली आ रही योजना आधारित स्वास्थ्य सेवाओं को ही मजबूती प्रदान करेगी। ऐसा होने पर स्वास्थ्य के क्षेत्र में कोई मूलभूत परिवर्तन किए जाने की संभावना खत्म हो जाएगी। या फिर इससे सरकार से की जाने वाली लोगों की अपेक्षाओं में वृद्धि हो सकती है। ऐसा होने पर प्रतिस्पर्धी राजनीति का स्तर ऊँचा उठेगा।

हाल ही में राहुल गांधी ने ब्रिटेन स्वास्थ्य सेवाओं की तर्ज पर स्वास्थ्य नीति लाए जाने का वक्तव्य दिया है। हैरानी इस बात की है कि उनकी पार्टी ने ही देश में निजी स्वास्थ्य सेवाओं को खुली छूट दी थी। जो भी हो, उनकी जीत की संभावना में यदि ब्रिटेन जैसी स्वास्थ्य सुविधाओं की प्रतिस्पर्धी राजनीति शामिल हो सकती है, तो इससे जनता का ही भला होगा।

  • आयुष्मान भारत जैसी योजना, जन वित्त पोषित सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवाओं का आधार बनाकर चल सके, तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित संजय नगराल के लेख पर आधारित। 3 जनवरी, 2019

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