आयुष्मान भारत से जुड़ी आशंकाएं

Afeias
19 Dec 2018
A+ A-

Date:19-12-18

To Download Click Here.

स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक, आयुष्मान भारत यानी कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, स्वास्थ्य क्षेत्र की सबसे अधिक महत्वाकांक्षी योजना कही जा सकती है। अगर इसे उचित प्रकार से कार्यान्वित किया जा सके, तो यह देश के 50 करोड़ निर्धन लोगों की स्वास्थ्य रक्षा अवश्य ही कर सकेगी। अब तक इस योजना से दो लाख लोगों को लाभ पहुँच भी चुका है।

इतने बड़े पैमाने पर चलाई जाने वाली इस महत्वकांक्षी योजना के लिए सतर्क और सघन सार्वजनिक जाँच-पड़ताल की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता। योजना के प्रति कुछ आशंकाओं में

  • पहली आशंका योजना के द्वितीयक व तृतीयक स्वास्थ्य सेवा स्तर पर ध्यान केन्द्रित करने को लेकर है। इस योजना में प्राथमिक उपचार एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी निवेश को नजरअंदाज किया गया है।
  • देश में जहाँ आपूर्ति संबंधी समस्या पहले से ही मौजूद हैं, वहाँ मांग बढ़ाए जाने की बात समझ में नहीं आती।
  • योजना में स्वास्थ्य-पैकेज की कीमत बहुत कम होने से निजी अस्पताल, इसमें शामिल नहीं होना चाहेंगे।
  • अस्पताल की बीमा योजना बहुत ही सीमित दायरा रखती है। अतः अधिकतर खर्च का दबाव गरीब की जेब पर ही पड़ेगा।
  • विकट स्थितियों के लिए आवश्यक बजट या तो उपलब्ध ही नहीं होगा या फिर प्रदान नहीं किया जाएगा।

समीक्षा

  • योजना को लेकर की जा रही पहली आशंका निराधार नहीं है। स्वास्थ्य क्षेत्र की मजबूती के लिए प्राथमिक चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी निवेश, दो आवश्यक स्तंभ हैं। इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि देश के निर्धन लोगों को द्वितीयक व तृतीयक दर्जे की स्वास्थ्य सुविधा की भी नितांत आवश्यकता है। स्वास्थ्य योजना के अभाव में, बीमार पड़ने पर उन्हें ईलाज के लिए या तो अपनी संपत्ति बेचनी पड़ती है या फिर उधार में एक बड़ी रकम लेनी पड़ती है। योजना के साथ प्राथमिक चिकित्सा व रोगनिवारक स्वास्थ्य पर निवेश जारी रहेगा।
  • दूसरी आशंका के संबंध में हमारी आपूर्ति व्यवस्था की कमी का मुद्दा सामने आता है। यह सच है कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति हजार व्यक्ति पाँच बिस्तर की तुलना में हमारे यहाँ 1.5 बिस्तरों का ही औसत आता है। इसमें भी 80 प्रतिशत बिस्तर निजी अस्पतालों में ही उपलब्ध हैं, जहाँ गरीबों की पहुँच नहीं है। आयुष्मान भारत योजना के द्वारा इसमें सुधार किए जाने की उम्मीद है।

प्रश्न यह है कि इस बढ़ी हुई मांग की पूर्ति की कैसे जा सकेगी ? निकट अवधि में तो यह निजी अस्पतालों के माध्यम से ही पूरी हो सकेगी। आमतौर पर निजी अस्पतालों में 60-70 प्रतिशत बिस्तर ही घिरे रहते हैं। इसके अलावा मरीजों की घर पर ही देखभाल वाली सुविधाओं को बढ़ाया जा रहा है, जिससे अस्पतालों में जगह खाली हो सकेगी। मध्यम अवधि में, निजी अस्पतालों का प्रसार टायर 2 और टायर 3 नगरों में किया जाएगा। इससे स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ेंगी। आयुष्मान योजना एवं सरकारी प्रोत्साहन राशि के चलते, निजी क्षेत्र और पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रसार होना तय है। गत दशक में, प्रतिवर्ष एक लाख बिस्तरों की बढ़त की जा रही है, जिसे 1.8 गुणा प्रतिवर्ष बढ़ाकर 2034 तक 3.6 करोड़ तक बढ़ाए जाने का लक्ष्य रखा गया है।

  • तीसरी आशंका स्वास्थ्य पैकेज को लेकर की जा रही है। योजना के अंतर्गत पैकेज की दरें निर्धारित कर दी गई हैं। इस योजना से बढ़ने वाले बिजनेस को ध्यान में रखा गया है। यही स्वास्थ्य सेवा में किफायत भी लाएगा। कुछ राज्यों; जैसे- गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में पहले से ही पैकेज व्यवस्था चल रही है। इन्हें उसी दर पर चलाए रखने की छूट दी गई है। समय के साथ जरूरत को देखते हुए सरकार पैकेज की दरों में बदलाव करने को भी तैयार है।
  • ऐसा कहा जाता है कि सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं से अभी तक लोगों की जेब से जाने वाले स्वास्थ्य खर्च में कोई कमी नहीं आती है। वैश्विक स्तर पर यह तर्क सही नहीं बैठता। चीन ने जब 2007 में यूनिवर्सल कवरेज शुरू किया था, तब लोगों का अपनी जेब से होने वाला स्वास्थ्य खर्च 60 प्रतिशत था, जो अब घटकर 30 प्रतिशत रह गया है। भारत में स्वास्थ्य बीमा के साथ होने वाले खर्च का आकलन नहीं किया गया है। केवल कर्नाटक राज्य में इस योजना से लोगों का खर्च बहुत कम होता पाया गया है।

योजना के लिए आवंटित कुल राशि 10,000, 20,000 करोड़ प्रतिवर्ष है। जबकि जेब पर पड़ने वाला स्वास्थ्य खर्च लगभग 2,40,000 करोड़ है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि योजना से गरीब जनता को पूरा न सही, लेकिन कुछ लाभ जरूर मिलेगा।

  • जहाँ तक योजना के लिए आवश्यक बजट का प्रश्न है, वित्त मंत्री ने संसद में योजना की पूरी फंडिंग किए जाने का भरोसा दिया है। इसके अलावा, स्वास्थ्य क्षेत्र की सार्वजनिक सुविधाओं में अभूतपूर्व वृद्धि किए जाने की उम्मीद है। अगले सात वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद में स्वास्थ्य खर्च को दुगुना किए जाने के प्रति सरकार प्रतिबद्ध है।

फिलहाल, गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करना, लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना, और उनकी जेब पर पड़ने वाले खर्च को कम करना ही आयुष्मान भारत योजना का लक्ष्य है। पिछले 70 वर्षों में इस दिशा में किए गए प्रयास सफल नहीं हुए हैं। अतः आयुष्मान भारत योजना का सफर चुनौतीपूर्ण है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अमिताभ कांत और इंदु भूषण के लेख पर आधारित। 9 नवम्बर, 2018

Subscribe Our Newsletter