किसानों का हित साधते कृषि सुधार

Afeias
13 Oct 2020
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Date:13-10-20

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हाल ही में पारित हुए जिन तीन कृषि विधेयकों का विरोध किया जा रहा है , वास्तव में वे काफी समय से लंबित थे। इसमें कोई दो मत नहीं है कि इन सुधारों से किसानों को दलालों की जरूरत नहीं रहेगी , और विपणन क्षमता बढ़ जाएगी। इसका विरोध इन मिथ्या आरोपों पर किया जा रहा है कि इससे सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य के अंतर्गत की जाने वाली खरीद नहीं होगी।

  • इसका सबसे पहला लाभ यह होगा कि किसानों को पूरे देश में कहीं भी अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता मिल जाएगी। विरोधी दल इसी कानून को लेकर सबसे अधिक विरोध कर रहे हैं। उनकी यह धारणा बिल्कुल गलत है कि इसके बाद सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद बंद कर देगी। सरकार को कुछ उपज तो न्यूनतम समर्थन मूल्य पर लेनी ही होगी , अन्यथा वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खाद्यान्न का प्रबंध कैसे करेगी।
  • दूसरा विरोध अनुबंध कृषि कानून को लेकर है। यहां सबसे पहले यह समझने की आवश्यकता है कि कृषि कोई आकर्षक और लाभ का व्यवसाय नहीं है ( खासतौर पर एक हेक्टेयर से कम भूमि वाले किसानों के लिए)। ऐसे में अपनी आय बढ़ाने के लिए किसान; पशुपालन , फल और सब्जियों की खेती की ओर बढ़ रहे हैं।

इस प्रकार कम भूमि से भी लाभ का व्यवसाय किया जा सकता है , परंतु फल-सब्जी जल्दी खराब होती हैं। इसके लिए उचित भंडारण और वितरण की आवश्यकता होती है। अनुबंध कृषि के माध्यम से किसानों का समूह एक निश्चित दाम पर एग्रो प्रोसेसर कंपनियों से अनुबंध कर सकेगा। इस अनुबंध से कोई भी किसान बिना किसी मुआवजे के बाहर आ सकता है। इससे छोटे किसानों को पैमाने की अर्थव्यवस्था का लाभ मिल सकेगा। खरीद करने वाली कंपनियां नई तकनीकों और उन्नत कृषि से उनका विकास करेंगी। यहां आईटीसी का उदाहरण लिया जा सकता है।

  • आवश्यक वस्तु अधिनियम को जमाखोरी के खिलाफ दशकों पहले लाया गया था। राज्यों को डिक्री का अधिकार था , और इससे वे व्यापारियों को माल बाहर ले जाने से रोक सकते थे। इससे किसान भी प्रभावित होते थे। वे आलू प्याज के दाम गिरने पर नुकसान में रहते थे , परंतु बढ़ने पर उन्हें कोई लाभ नहीं होता था। इसके चलते कोई भी व्यापारी मालगोदाम में निवेश का खतरा भी नहीं उठाता था।

कुछ नेताओं को लगता है कि सभी कृषि उपज की उच्च दामों पर सरकारी खरीद इसका समाधान है। परंतु वैश्विक अनुभव से पता चलता है कि अगर सरकार की गारंटी की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर से ऊपर है , तो इससे ऐसी स्थिति आएगी कि घरेलू और विदेशी , दोनों ही मांग नहीं रहेगी। यूरोपीय यूनियन ने इस समस्या को भुगता है , और अब वह किसानों के लिए प्रत्यक्ष आय समर्थन को बेहतर समझता है।

भारत भी इसी तर्ज पर आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री किसान योजना , रायथु बंधु योजना , ओडिशा की कालिया (के ए एल आई वाई ए) आदि नकद हस्तांतरण, मुर्गी-बकरी और मत्स्य पालन के लिए भूमिहीन परिवारों को नकद सहायता , छोटे और सीमांत किसानों को इनपुट खरीदने के लिए नकद राशि और बीमा लाभ आदि से किसानों को कृषि से इतर आय के साधन जुटाने की स्वतंत्रता मिल रही है। यही सर्वोत्तम मार्ग है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित स्वामीनाथन एस अंकलेश्वर अय्यर के लेख पर आधारित। 27 सितम्बर , 2020

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