छोटे किसानों के हित में

Afeias
14 Sep 2020
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Date:14-09-20

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भारत में कृषि कर्म में लगी जनसंख्या में से अधिकांश छोटी जोत के किसान हैं। ये कुल कृषि भूमि का केवल 44% ही जोतते हैं , और कुल कृषि आउटपुट में इनका 50% का योगदान है। हाल ही में किए गए कृषि सुधारों का महत्व तभी माना जाएगा , जब ये छोटे किसानों को लाभ पहुँचा सकें ।

कुछ तथ्य

  • लगभग 85% कृषक परिवार , जिनकी संख्या 60 करोड़ के लगभग है , एक हेक्टर से भी कम भूमि पर कृषि करते हैं।
  • भारत का एक औसत किसान छोटे स्तर के उत्पादन तंत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
  • वह लगभग आठ हजार प्रति माह कमाता है।
  • उसके पास अपनी आय बढाकर , बचत या निवेश करने का अवसर ही नहीं रहता।
  • वह औपचारिक बाजारों तक नहीं पहुँच पाता। सरकारी खरीद प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पाता , भंडारण नही कर पाता।
  • ये सभी समस्याएं कृषि में संलग्न 40% महिला कृषकों के लिए और भी गंभीर हो जाती हैं।
  • सीमित संसाधन , सूचना की विषमता और लेन-देन की ऊँची दर के चलते इन किसानों की पहुँच सार्वजनिक क्षेत्र के बुनियादी ढांचों , वस्तुओं और सेवा तक नहीं हो पाती।

सरकारी प्रयास

  • कृषि विपणन नीति ने समावेशी बाजारों की जमीन तैयार कर दी है। अब सरकार को चाहिए कि वह पारंपरिक तरीकों से परे लक्ष्य आधारित परिणामों पर काम करे। इस हेतु समस्या के समाधान और गैर-सार्वजनिक क्षेत्र पर ध्यान देना होगा।
  • छोटे उत्पादकों को अवसर और बाजार के भरोसे छोडने के बजाय, सरकार को उनका तालमेल कृषि-खाद्य क्षेत्र के साथ बैठाना होगा।
  • सरकारी अधिकारियों को निजी क्षेत्र पर अविश्वास को छोडना चाहिए , और बाजार के प्रतिद्वंदियों को सहयोग करना चाहिए।
  • कृषि – इनपुट , ट्रेडिंग, भंडारण , लॉजिस्टिक्स, खुदरा और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उपक्षेत्रों को छोटे उत्पादकों और काश्तकारों तक पहुँच की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • सरकार को बिजनेस रिस्क मैनेजमेंट में भागीदार बनना होगा।
  • सरकार को निजी क्षेत्र में चल रहे 20 लाख के लगभग कृषि-खाद्य संबंधी सूक्ष्म , लघु और मध्यम उद्यमों के साथ सहयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए। ये उद्यम ही छोटे उत्पादकों की आय को बढ़ाने में मदद करेंगे।
  • इन उद्यमों को पर्याप्त बिजली , कुशल श्रमिक , सूचनाओं तक पहुँच , वित्तीय मदद , स्टार्टअप्स के साथ जुड़ाव और विश्वास देकर बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • कृषि-खाद्य और खुदरा कंपनियां , निर्यातक सामाजिक उद्यमी , संस्थाएं और कई स्टार्टअप ऐसे हैं , जो विभिन्न उपज , पशुपालन और मत्स्य पालन के कई मार्केट-लिंकेज मॉडल पर काम कर रहे हैं। इनमें से कई तो आधुनिक और उत्तम तकनीक का इस्तेमाल करके कृषि उपज को सही महत्व दिलवा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि कृषि विज्ञान केंद्रों के साथ-साथ तकनीकी मदद लेकर एक राष्ट्र-स्तरीय एकीकृत अभियान चलाए।
  • डेटा के माध्यम से प्रभाव जानने के लिए सरकार कृषक-उत्पादक संघों की मदद ले सकती है।

सरकारी प्रयासों की वास्तविकता को जानने और उनमें पारदर्शिता लाने के लिए किए जाने वाले प्रयासों में ओडिशा ने उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने किसानों के लिए शिकायत निवारण मंच बनाकर सीधे किसानों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है।

कृषि सुधारों से उम्मीद की जा सकती है कि ये छोटे किसानों के आय के स्रोत  बढ़ाने में आने वाली अनेक चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करेंगे।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स‘ में प्रकाशित पूर्वी मेहता और निधि नाथ श्रीनिवास के लेख पर आधारित। 29 अगस्त , 2020

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