छोटे व्यवसायियों के लिए सुगमता

Afeias
13 Dec 2019
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Date:13-12-19

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अक्सर ऐसा समझा जाता है कि छोटे व्यवसायी अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े होते हैं, ये कर में चोरी करते हैं, और नियम-कानूनों से बच निकलते हैं। हाल के कुछ वर्षों में कंसलटेंसी, शोध, सलाह-मशविरा एवं अन्य ज्ञान आधारित सेवाओं से जुड़ी छोटी कंपनियां अस्तित्व में आई हैं। इनका कारोबार निर्यात से भी जुड़ा है, और ये औपचारिक क्षेत्र की कंपनियां हैं।

बड़ी कंपनियों की तुलना में इनके कर्मचारियों की संख्या कम होती है। ये रजिस्ट्रार ऑफ कंपनिज़ (आर ओ सी) और जीएसटी नेटवर्क से जुड़ी ऐसी कंपनियां हैं, जो समय पर कर अदायगी करती हैं। बड़ी कंपनियों की तुलना में इन्हें अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे इनका विकास अवरूद्ध हो जाता है, निवेश कम हो जाता है, और रोजगार के अवसर खत्म हो जाते हैं।

छोटे व्यवसायियों की समस्याएं और समाधान

  • इस श्रेणी में आने वाली अधिकांश कंपनियां सेवा क्षेत्र से जुड़ी हुई होती हैं। हमारे बैंक, विनिर्माण क्षेत्र को ऋण देना अपनी प्राथमिकता समझते हैं। इसके साथ ही वे भूमि का मालिकाना हक, फैक्टरी साइट आदि को ऋण का आधार मानते हैं, जो इन कंपनियों के पास नहीं होता।

सरकार को चाहिए कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में चलाए जा रहे 59 मिनट में लोन प्राप्त करने वाले कार्यक्रम को सशक्त बनाए। साथ ही निजी बैंकों को इस पोर्टल से जुड़ने या अपने स्वयं के लोन पोर्टल बनाने के लिए प्रोत्साहित करे। इन कंपनियों को ‘इंस्टीट्यूशनल क्रेडिट’ उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए।

  • अगर हम 2029 तक 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को वाकई प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें इन कंपनियों को फिलहाल अनुपालन के बोझ और इससे जुड़े खर्चों से बचाना होगा।

इन सबसे बचे समय और पूंजी को ये अपनी मार्केटिंग और सेवाओं के विस्तार में लगा सकेंगे।

बहुत से निर्यात संवर्धन परिषद्, बड़ी कंपनी और छोटी कंपनियों में भेद नहीं करते हैं। वे दोनों से बराबर का सदस्यता शुल्क लेते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए।

इसके अलावा इन छोटी निर्यातक कंपनियों के बैंक फॉरेक्स कंवर्जन दर भी 3 प्रतिशत के आसपास लेते हैं, जो कि बहुत ज्यादा है।

  • वस्तु व सेवा कर की मासिक फाइलिंग भी इन कंपनियों के लिए एक बड़ा सिरदर्द है। इसे वार्षिक किया जाना चाहिए।

इसके अलावा भी इनसे कई तरह की वित्तीय रिर्पोटिंग करने को कहा जाता है। इसे सुगम बनाया जाना चाहिए।

छोटे-छोटे कई अवरोध ऐसे हैं, जो छोटी कंपनियों के विकास-मार्ग में रोड़ा हैं। इन्हें दूर करने का काम सरकार का है। नियमन को सरल और तार्किक बनाकर, बैंकों से ऋण की सुविधा को बढ़ाकर तथा गैर जरूरी वित्तीय फाइलिंग को हटाकर इन कंपनियों को देश के सकल घरेलू उत्पाद में दमदार योगदान के लिए तैयार किया जा सकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित रितेश कुमार सिंह के लेख पर आधारित। 21 नवम्बर, 2019

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