छोटे पैमाने वाले अनुसंधान को महत्व दें

Afeias
01 Mar 2018
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Date:01-03-18

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चालू वित्त वर्ष के बजट में सरकार ने विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में शोध एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए उस पर होने वाले खर्च को लगभग दोगुना कर दिया है। यह बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 0.8 प्रतिशत हो जाएगा। इसके बावजूद हम इस क्षेत्र में चीन, इजराइल, जापान और अमेरिका से पीछे रहेंगे, जो लगभग 2 प्रतिशत तक खर्च करते हैं।

छोटे पैमाने पर किए जाने वाले अनुसंधान महत्वपूर्ण हैं

शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में अक्सर ऐसा देखने में आता है कि स्वतंत्र रूप से या छोटे समूहों में काम करने वाले अनुसंधाकर्ता, नवप्रवर्तन के क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक सफल एवं लाभदायक परिणाम दे पाते हैं। 2012 में जेनेवा में हिग्स् बॉसन की खोज ने दुनिया में तहलका मचा दिया था। इसकी शुरुआत हिग्स् बॉसन ने स्वतंत्र रूप से की थी। बाद में निःसंदेह यह एक बड़े समूह के द्वारा सफल किया गया। इसी प्रकार गूगल का विचार लैरी पेज और सर्जी ब्रिन का था, जिन्होंने स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में थोड़े से अनुदान से इसे प्रारंभ किया था।

1928 में डॉ. सी.बी.रमन ने अपनी लैब में स्पैक्ट्रमीटर तैयार करने पर मात्र 200 रूप्ये खर्च किए थे। ऐसे कई उदाहरण हैं, जो यह दर्शाते हैं कि छोटे बजट और स्वतंत्र रूप से किए गए अनुसंधान अधिक सफल रहे हैं।

अनुसंधान अनुदान का अभाव

इस वर्ष के बजट में विज्ञान को दी गई राशि में से लगभग 3.22 प्रतिशत वैज्ञानिक संस्थानों को दिए जाने का प्रावधान है। यह राशि प्रतिस्पर्धी अनुसंधान अनुदान के रूप में बहुत कम है।

अमेरिका में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हैल्थ ने 2017 में अनुसंधान के लिए 25 अरब डॉलर की राशि रखी है। यह गैर रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान के लिए दी गई राशि का 36 प्रतिशत है। यू.के. की इंजीनियरिंग एण्ड फिजीकल साइंस रिसर्च कांऊसिल ने अनुसंधान के बजट का लगभग 10 प्रतिशत अनुदान के रूप में दिया है। यह सब देखते हुए भारत को अभी अनुसंधान के लिए दिए जाने वाले अनुदान का पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है।

भारत में रक्षा, अंतरिक्ष, नाभिकीय एवं पर्यावरण संबंधी विज्ञान के क्षेत्र में मिशन-उन्मुख योजनाओं पर बहुत अधिक खर्च का प्रावधान रखा जाता है। इसके साथ ही नवप्रवर्तन के पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने के लिए छोटे बजट वाले अनुसंधानों को भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस तथा एजुकेशन एण्ड रिसर्च आदि को अधिक अनुदान दिए जाने पर विचार किया जाना चाहिए।वर्तमान बजट के आर्थिक सर्वेक्षण में भी इसी पक्ष को ऊजागर किया गया है। उम्मीद की जा सकती है कि इस दिशा में प्रयास किए जाएंगे।

‘द हिन्दू में प्रकाशित एम.एस.संथानम के लेख पर आधारित।

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