शिशुओं की रक्षा करें

Afeias
05 Mar 2018
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Date:05-03-18

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  • भारत में शिशु मृत्यु दर चिंताजनक स्थिति में है। यह प्रति हजार 25.4 है, जबकि जापान में यह मात्र 1, बांग्लादेश में 20.1 और श्रीलंका में 5.3 है।
  • शिशु मृत्यु दर का सीधा संबंध किसी देश के आय के स्तर से जोड़ा जाता है। यूनिसेफ ने निम्न मध्यम आय वाले 52 देशों में भारत को 12वां स्थान दिया है, जो कि चिंतनीय है। हमारे पड़ोसी देशों की बेहतर स्थिति का देखते हुए एक बात सिद्ध होती है कि केवल संसाधन और प्रति व्यक्ति आय ही शिशु मृत्यु दर के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। राजनीतिक इच्छा शक्ति की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
  • देश में मणिपुर ऐसा राज्य है, जहाँ की लचर अर्थव्यवस्था और लगातार चलने वाले विद्रोहों के बावजूद शिशु मृत्यु दर लगातार तीसरे वर्ष सबसे कम रही है।

             प्रत्येक बजट में स्वास्थ्य योजनाएं लाई जाती हैं, लेकिन ये सीमित राज्यों में ही लागू की जाती हैं। कुछ राज्यों में मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा समूह) के प्रयासों से प्रसवपूर्व स्वास्थ्य, सुरक्षित प्रसव एवं नवजात की देखभाल से शिशु मृत्यु दर के नियंत्रण में सफलता प्राप्त की गई है। मणिपुर भी इनमें से एक है।

  • इस क्षेत्र की प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना जैसी योजनाएं पहले प्रसव के जीवित शिशु पर 5,000 प्रति मातृत्व देने का प्रावधान रखती है। इस प्रकार की योजना के पुनरावलोकन की आवश्यकता है। इसके साथ ही महिला एवं पति के आधार की जाँच की अनिवार्यता पर भी विचार किया जाना चाहिए।
  • यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में दो स्तरों पर सुधार की आवश्यकता जताई है। (1) वहन करने योग्य स्वास्थ्य सेवाओं तक अधिक से अधिक लोगों की पहुँच हो, तथा (2) स्वास्थ्य सेवाओं के स्तर में सुधार हो।

भारत को दोनों ही स्तरों पर क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। हमारे स्वास्थ्य केन्द्रों में चिकित्सकों, दवाइयों और स्वच्छता का अभाव है। सरकार को इस दिशा में गंभीर प्रयास करने होंगे।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित।

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